पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२७

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१० द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र नहीं। जो कुछ वे भेजेंगे उसे हम प्रेमोपहार' समझ कर अनमोल और अलभ्य मानेंगे। मैशीन को पैक (बन्द ) करके भेजिएगा। दूर का मामला है। रेलवाले जिम्मेवारी भी वैसे नहीं लेते। नुकसान का डर रहता है। और सब कुशल है। भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी (१२) दौलतपुर (डाकघर, भोजपुर) रायबरेली प्रियवर कृपापत्र आया। कविता भी मिली। शिक्षाशतक का शेषांश भी भेजिए जिसमें हम उसे लगातार छापते जायं । बंद न करना पड़े। कविता बहुत अच्छी है। रसाल- पंचक को भी किसी समय प्रकाशित कर देंगे। पश्चात्तापशतक को आप थोड़ा ही सा भेजकर चुप हो गये। क्यों? ___ अभी हम कई एक महीना यहाँ रहेंगे। अनन्तर कानपुर जाने का विचार है। ३ महीने घर पर रहना काफी होगा। यहाँ देहात में दिल नहीं लगता। आम की फसल भी गई। हम आपके राजा साहब और आपकी कृपा रूपी सहायता के हमेशा इच्छुक रहते हैं। उसके लिए समय और आवश्यकता क्या ? दीनबंधु का चरित शायद अगस्त में छप जाय। तस्वीर नहीं मिली। भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी १. राजा साहब ने द्विवेदी जी को लिखा था कि आपके 'सरस्वती'-संपादन की मनोहरता से प्रसन्न होकर हम आपको कुछ पुरस्कार देना चाहते हैं। इस पर द्विवेदी जी ने लिखा था कि द्रव्य के अतिरिक्त कोई ऐसी चीज भेजिए जिसका हम नित्य उपयोग करें और जिससे हमें दैहिक और मानसिक सुख मिले। तब 'राजा साहब ने उन्हें एक कीमती बाइसिकिल (जो अपने लिए मंगवाई थी) भेजी और एक बंगला-काव्य-ग्रंथावली। -संपादक