पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/३२

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द्विवेदी जी के पत्र 'जनसीदन' जी के नाम १५ यदि मैकर, नमूना या नाप इत्यादि जानना या देखना हो तो थामसन कं०, कलकत्ता के सूचीपत्र में देख लीजियेगा। न हो तो एक कार्ड भेजकर मंगा लीजिएगा। इस विषय में हम और कुछ लिखकर आपको अधिक कष्ट देना नहीं चाहते। भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी (१७) कानपुर १२-१२-०४ प्रिय पंडित जी, प्रणाम कृपापत्र आया। परमानन्द हुआ। आपका हम पर बड़ा प्रेम है। हम आपके ऋणी है। हम आपकी इस कृपा के पात्र तो नहीं। परन्तु यह आपकी उदारता है जो आप हमसे इतना स्नेह-भाव रखते हैं । आपने 'सरस्वती' के लेखों के विषय में जो लिखा वह हमारे लिए बहुत उत्साहजनक है। कभी-कभी हमारे दोषों की भी हमको सूचना देते रहिए। ' छः महीने ही घर से अलग रहना आप बहुत समझते हैं। शायद आप सस्त्रीक वहाँ नहीं है। हम तो तीन-तीन वर्ष घर का मुंह नहीं देखते रहे हैं। श्रीमान आपको अपनी दृष्टि से दूर नहीं करना चाहते, यह तो आपके लिए सौभाग्य की बात है। भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी (१८) कानपुर १३-१-०५ प्रणाम . ४.ता० का कृपाकार्ड कल आया। बहुत दिन में पहुंचा। परमेश्वर करे श्रीमान शीघ्र ही सर्वतोभाव से नीरोग हो जायं और पूर्ववत् प्राबल्य प्राप्त कर लें।