द्विवेदी जी के पत्र 'जनसीदन' जी के नाम २१ (२७) दौलतपुर ३-७-०६ प्रिय पंडित जी ___कृपाकार्ड मिला। यहां आये हमें कई दिन हुए। रोज सायंकाल गंगातट पर व्यतीत होता है। पानी खूब बरस रहा है। आम खाने का बड़ा आनन्द है। आशा है, आप भी सुख से कालयापन करते होंगे। प्रार्थना का पूर्वार्द्ध मिल गया। आज्ञा- नुसार परिवर्तन जरूर कर देंगे। जरा वृहत् लेख का नाम तो बतलाइए। 'सरस्वती' के लिए तो छोटे ही छोटे लेख अच्छे होंगे जिसमें एक लेख एक ही अंक में या अधिक से अधिक दो में समाप्त हो जाय। श्रीमान् को ईश्वर शीघ्र नीरोग करे। भवदीय महावीरप्रसाद (२८) दौलतपुर २१-७-०६ प्रिय पंडित जी प्रणाम । एलेक्शन पर जो कविता आपने भेजी, बड़ी मजेदार है। यह राज- नैतिक विषय है। इससे 'सरस्वती' के नियमों के अनुसार इसके प्रकाशन में हम अक्षम है। इसे किसी और पत्र में छपवाइए, पर छपवाइए जरूर। पांच-चार दिन से हम अस्वस्थ हैं। कई फोड़े हो गए हैं। एक के कारण चल-फिर तक नहीं सकते। भवदीय म०प्र० (२९) दौलतपुर, डाकघर भोजपुर, रायबरेली २७-७-०६ प्रिय पंडित जी हम आजकल अपने जन्मग्राम आए हुए हैं। आपके उधर भी बहुत आम होता है और हमारे इधर भी। हम लुईकुने के अनुयायी हैं। फलों के हम भक्त हैं।