द्विवेदी जी के पत्र 'जनसीदन' जी के नाम मिले। हमें पहले ही से श्रीमान् ने काफी तौर पर उत्साहित कर दिया है। हमको छोड़कर और लोगों में से जिसका लेख श्रीमान् को पसंद हो उसे मेडल मिलना चाहिए। एडिटर को मेडल देना यों भी सुननेवालों के कान को खटकेगा। आप अपने लेख में यह कह सकते हैं कि किन कारणों से मेडल लेना अनुचित समझा। मेडल कलकत्ते में आप ही बनवाइए। उसके एक तरफ पानेवाले का नाम और '१९०५ की 'सरस्वती' में सबसे अच्छा लेख लिखने के उपलक्ष्य में' या ऐसा ही और कोई वाक्य रहे। दूसरी तरफ श्रीमान का मोनोग्राम इत्यादि। यदि आपको यह पत्र मकान पर मिले तो इसका आशय आप श्रीमान् को लिख भेजिएगा या इसीको भेज दीजिएगा। भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी (३१) दौलतपुर ७-३-०७ अनेक प्रणाम ____ कृपापत्र मिला। वृत्त विदित हुआ। प्रार्थनाशतक के विषय में हम जरूर अप- राधी हैं। उसे और राजा साहब की एक कविता को अपनी ही चीज समझकर हमने अभी तक नहीं छापा। जहां हमारे अनेक लेख बरसों से पड़े हैं वहां उन्हें भी हमने डाल रक्खा। औरों के छापते रहे, क्योंकि औरों के मिजाज संभालने की अधिक जरूरत समझी। 'दशरथ के प्रति कैकेयी' तो हमने मार्च में छपने भेज दिया। प्रार्थ- नाशतक भी अब महीने दो महीने में शुरू करेंगे। कोई परिवर्तन दरकार नहीं। एक आध जगह था सो पहले ही हो गया है। ११ मार्च को कानपुर के लिए प्रस्थान है। भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी
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