पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/४१

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द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र (३२) जुही, कानपुर १२-३-०७ बहुविध प्रणाम ____ कृपाकार्ड मिला। आपके पत्र का उत्तर हम दे चुके हैं। बड़ी कृपा है जो 'स्वा- धीनता' आप श्रीमान् को सुना रहे हैं। दूसरे पत्र में सविस्तार समाचार भेजने का जो आपने वादा किया है सो शीघ्र पूरा कीजिए। स्वाधीनता इसी महीने छप चुकेगी। . . भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी (३३) कानपुर २८-३-०७ प्रियवर प्रणाम । कृपापत्र मिला। श्रीमान् 'स्वाधीनता' का समर्पण स्वीकार करते है, यह हमारा अहोभाग्य है। हमने देखा कि बंगाली लोग तक श्रीमान् को पुस्तकें समर्पण करते हैं और हम पर क्या सांरी हिंदी भाषा पर श्रीमान की इतनी कृपा है, अतएव यदि हम उनकी इस कृपा-इस साहित्यप्रेम का--बदला एक आध पुस्तक समर्पण करके उन्हें न दें तो हम पर कृतघ्नता का दोष आता है। यही हमारा मुख्य अभिप्राय है। . पुरस्कार की बात न पूछिए। श्रीमान को अपने मान-सम्भ्रम की तरफ देखना चाहिए-हमारे नहीं। हमें यदि वे अपनी कृपा का पात्र बनाना चाहेंगे, तो हमें बनना ही पड़ेगा, क्योंकि वैसा न होने से श्रीमान् को क्या कम दुःख होगा? भाई बात यह है- वसु यच्छतु वा न वा नरेशो यदि कर्णेऽपि च भारती करोतु यदि श्रीमान् 'राजारानी' का संशोधन हमसे करावेंगे तो हम क्या इन्कार कर सकेंगे? क्या यह भी संभव है ? करना ही पड़ेगा-हम खुशी से करेंगे। हमने सम्प- त्तिशास्त्र लिखना शुरू किया है। उसे कुछ दिन के लिए बंद कर देंगे। राजारानी