पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/४२

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द्विवेदी जी के पत्र 'जनसीदन' जी के नाम २५ की कापी की सतरें दूर दूर हों, हाशिया भी हो, और लिपि साफ हो तो अच्छा, जिसमें संशोधन में सुभीता हो। साथ मूल पुस्तक भी भेजी जाय। कितनी बड़ी पुस्तक है ? शब्द भी जरा दूर दूर हों तो और अच्छा हो। आपने स्वाधीनता की भाषा को पसंद किया, यह सुनकर हमें परम संतोष हुआ। यह हमारे लिए बड़े उत्साह की बात है। __ स्वाधीनता छप गई। भूमिका छप रही है। समर्पणपत्र लिखकर कल परसों तक छपने भेजेंगे। चिट्ठी देखते ही आप राजा साहब का पूरा नाम लिख भेजिए। कुमार कमलानंद सिंह ठीक है न? आपकी अस्वस्थता और आपके बहनोई के घर जलने का हाल सुनकर दुःख हुआ। हमें आप अपने दुख से दुखी समझिए। विनत महावीरप्रसाद द्विवेदी (३४) जुही, कानपुर १५-११-०७ प्रियवर पंडित जी १२ नवम्बर का कृपापत्र मिला। नवम्बर की 'सरस्वती' को निकले १०-१२ दिन हुए। न मालूम क्यों श्रीमान् को नहीं मिली। कहीं खो तो नहीं गई? ३-४ दिन हुए एक पत्र और एक सचित्र 'स्वाधीनता' श्रीमान को मुंगेर के पते से भेजी है। आशा है वहां से वह श्रीनगर भेज दी गई होगी और श्रीमान को मिल गई होगी। श्रीमान की तबीयत का हाल कृपा करके देते जाइए। हमें विश्वास है, आप सर्वथा हमारे हितचिन्तक हैं। हमसे अधिक आपको हमारा खयाल है। विनीत महावीर