पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/४४

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द्विवेदी जी के पत्र 'जनसीदन' जी के नाम २७ श्रीमान राजा साहब ने जो कुछ फरमाया उसके लिए हमारा कृतज्ञता-प्रका- शन उनपर प्रकट कर दीजिएगा। झालरापाटन के महाराज बड़े ही विद्यारसिक हैं और उनके दीवान पं० परमा- नन्द चतुर्वेदी भी उन्हीं की तरह विद्याव्यसनी हैं। महाराज साहब ने अपनी राज- धानी में एक विशाल पुस्तकालय अपने विद्वान दीवान के नाम से खोला है। हजार बारह सौ की पुस्तकें उसमें हर महीने नई मंगाई जाती हैं। बहुत अच्छा, संपत्ति शास्त्र छप जाने पर और महाराज के पास पहुँच जाने पर आपको सूचना देंगे। उस चित्र को जाने दीजिए, और चित्रों में से जिसपर आपका जी चाहे फुरसत मिलने पर कविता भेजिएगा। आपसे सहायता की हमें बहुत कुछ आशा है। अच्छी बात है, 'वक्तव्य' की नकल कर लीजिए। उत्तम तो तब होता जब श्रीमान उसे छपा डालते और एक आध कापी हमें भी भेज देते। पब्लिक के लिए नहीं, प्राइवेट तौर पर छपाने से हानि न थी। आपकी नकल पूरी हो जाय तो हमें खबर दीजिएगा। भवदीय महावीरप्रसाद ( ३७) जुही, कानपुर ३-८-०८ प्रियवर पंडित जी महाशय २७ का कृपापत्र मिला। 'सरस्वती' की पुरानी जिल्दें प्रेस में एक भी नहीं रह गईं। कई लोगों ने हमें लिखा, पर नहीं मिली। हमारा इरादा प्रयाग जाने का है। वहां जाकर हम खुद ढूंढेंगे और जो दूसरा तीसरा भाग फालतू मिला तो फौरन श्रीमान को भेज देंगे। ___आपको बुखार आ गया, यह सुनकर दुख हुआ। आशा है, अब आप प्रकृतिस्थ होंगे। विनीत महावीरप्रसाद