पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्री पं० कामताप्रसाद गुरुजी के नाम (१) दौलतपुर, रायबरेली १८-७-२७ नमोनमः सेठ गोविन्ददास जी की आप पर बड़ी कृपा थी। शायद अब भी है। आपही की सलाह से मैंने उनका गुणगान सरस्वती में होने दिया था। आप ही की सिफा- रिश और सेठ जी ही की उदारता के भरोसे अपनी ३ पुस्तकें शारदा पुस्तकमाला को मैंने दी थीं। आशा तो यह थी कि सभी पुस्तकें मैं दूं, पर तीन ही कठिनता से छप सकीं। यह छ: सात वर्ष की बात है। मुझे इन पुस्तकों के हिसाब में ४०० रु० मिल चुके हैं । लगभग इतने ही और चाहिए। परन्तु देना लेना और पुस्तकें बेचना तो दूर, अब तो मेरे पत्रों का उत्तर देने वाला भी कोई नहीं। मैं इस बात का उला- हना बाबू गोविन्ददास को दे चुका हूँ। उन्होंने इस मामले का निपटारा कर देने का वचन भी दिया है। महाबलेश्वर से शायद वे अबतक लौट आये हों। कृपा करके उनसे मिलिए और यथासमय मेरा बकाया मुझे भिजवाने का प्रबन्ध करा दीजिए। मुझे रुपये की इस समय बड़ी जरूरत है। बाबू साहब चाहें तो मेरी इतनी पूर्ति सहज- ही कर सकते हैं। पुस्तकें अन्यत्र छपाने की भी अनुमति दिलाइए। उत्तर देने की कृपा कीजिए। पंडित कामताप्रसाद गुरू असिस्टेंट मास्टर, ट्रेनिंग कालेज, भावाक जबलपुर सिटी महावीरप्रसाद द्विवेदी (२) दौलतपुर, रायबरेली २६-७-२७ प्रणाम २१ का पोस्टकार्ड मिला। कृतज्ञ हुआ। मालूम नहीं, कबतक सेठ गोविन्ददास जी कलकत्ते से लौटें। बताइए। उनके लौटते ही कृपा करके मेरा काम करा दीजिये । वे बड़े दीर्घसूत्री मालूम होते हैं। .