पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/६६

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द्विवेदी जी के पत्र ना०प्र० तथा डॉ० श्यामसुन्दरवास जी के नाम ५१ बाबू वासुदेवसहाय अभी १० बजे तक आज नहीं लौटे। गये चौथा दिन है। जितनी पुस्तकें निकाली हैं छोटे-छोटे तीन बक्सों में आ गई हैं। छुट्टी पर न जाते तो काम हो जाता। देखू कब लौटते हैं। आने को तो आज ही को कहा था । बृहस्पति तक जितनी पुस्तकें और निकाल सकेंगे निकालेंगे । बाकी दो तीन महीने बाद निकल सकेंगी, क्योंकि मैं १६ ता० को गांव चला जाऊंगा। ___ संस्कृत में जो शब्द जिस लिंग का है हिंदी में वह लिंग हमेशा नहीं रहता। व्यक्ति शब्द को यदि अधिकांश या सभी लेखक हिंदी में पुंलिंग मानते हों तो वही लिंग उसका होगा। मेरा मतलब यह कि इसका लिंग अभी निश्चित नहीं। इससे समय पर विचार कर लिया जाय । बाबू श्यामसुन्दरदास, बी० ए०, नागरीप्रचारिणी सभा, काशी • आपका म०प्र० द्विवेदी - ETY LIBRT UNIVERY २0६C186 जुही-कलां, कानपुर ११-११-२३ आशीष नंबर (१) पो० का लिख चुकने पर आपका ५ नवंबर का पत्र नं०१३६९।३१ मिला। बैरंग भेजा गया, इससे देर से मिला। पाठक जी को न भेजिएगा। मुझमें जोर से बोलने की शक्ति नहीं। - (46) पत्रव्यवहार अब पीछे दूंगा। अभी तो शायद सब पुस्तके भी न दी जा सकें। आपकी चिट्ठी का लिफाफा बाबू गोपालदास का लिखा जान पड़ता है। अगर वे टिकट लगाना भूल गये हों तो मेरे के आधे-) के पान सभा के कर्म चारियों को खिलावें। जान बूझ कर बैरंग भेजा तो कुछ बात नहीं। बाबू श्यामसुन्दरदास, बी० ए०, नागरीप्रचारिणी सभा, काशी आपका म०प्र० द्विवेदी