द्विवेदी जी के पत्र पं० हरिभाऊ उपाध्याय के नाम ४. साहित्यसीकर वेद, प्राकृतभाषा, संस्कृत साहित्य का महत्व, हिन्दी शब्दों के रूपान्तर, कापी- राइट ऐक्ट आदि पर मेरे २१ लेखों का संग्रह। पृष्ठ संख्या कोई २०० । ५. साहित्यालाप हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि विषयक मेरे १८ लेख। लिपि का उत्प- त्तिकाल, हिन्दी का साहित्य, देशव्यापक भाषा, उर्दू और आज़ाद आदि लेख। पृष्ठ संख्या कोई ३५० । ६. विशिष्ट वार्ता कम्बोडिया, जावा, सुमात्रा, बाली, अफगानिस्तान, तुर्किस्तान आदि में प्राचीन हिन्दू राज्य और सभ्यता का वर्णन। कुछ जंगली जातियों का भी वर्णन । पृष्ठ संख्या १५०। ७. लेखांजलि इसमें भिन्न भिन्न विषयों के १९ लेख हैं। कुछ कुतूहलवर्धक, कुछ वैज्ञानिक, कुछ ऐतिहासिक । भेड़ियों की मांद में पले हुए लड़के, सौर जगत् की उत्पत्ति, उत्तरी ध्रुव की यात्रा, गौतम बुद्ध का समय आदि। पृष्ठ संख्या २००। (३) दौलतपुर, रायबरेली ३१-७-२७ शुभाशिषः सन्तु चिट्ठी मिली। आप सुकार्य में लगे हैं और जनहित कर रहे हैं, यह देखकर मुझे परम आनन्द और सन्तोष होता है। इधर उधर घूमने के कारण आपके भाइयों की शिक्षा में व्याघात न हो, इसका ख्याल रखिएगा। मेरी आंखों का दोष बढ़ा नहीं। जितना था उतना ही रह गया। पर जरा अपना काम कर रही है। शक्ति कम हो रही है। लिख पढ़ अधिक नहीं सकता। यदि हो सका तो आपके नये पत्र के लिए दस पांच सतरें भेजने की चेष्टा करूंगा। इस समय मेरी उदर व्याधि बढ़ गई है। दोनों लड़कियों को मैंने इस समय अपने ही पास बला लिया है। कमला किशोर लखनऊ में थे वे भी आ गये हैं। बीच में तबियत जियादह खराब हो गई थी, इससे ऐसा किया। क० कि० के एक ४ वर्ष की लड़की मनोरमा भी कुटुम्ब में बढ़ी है। शुभैषी ह० महावीरप्रसाद द्विवेदी
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