पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/९६

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम नहीं मिलता, द्वितीय यह स्थान अच्छा नहीं, न यहां कोई पुस्तकालय है, न कोई विद्वान् ही है, इसलिये उत्साह भंग सा रहता है । गत वर्ष मैंने 'राजतरंगिणी' से दो मनोहर कथायें उद्धृत करके एक समाचार पत्र में प्रकाशित की थीं, साप्ताहिक समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए लेख प्रायः रद्दी में जाया करते हैं, इसलिये कुछ सज्जन उन्हें पुनः प्रकाशित करने का अनुरोध करते हैं, क्या उनके लिये 'सरस्वती' में आश्रय मिल जायगा? क्या वास्तव में 'सरस्वती' के योग्य है ? भाषानुवाद की त्रुटियों का शोधन आप कर ही देंगे। आपने पढ़ी है। मेरे एक मित्र ने संस्कृत में उसका अनुवाद किया है। छपने से प्रथम उसे आपके पास भेजता हूँ। पद्मसिंह (५) ओम् जालंधर सिटी ६-८-०५ श्रीमत्सु प्रणतिपुरःसरं विनिवेदनम् ____ कृपापत्र मिला। अच्छा, यदि नियमविरुद्ध है तो विधवाविषयक कविता को न छपाइए। निःसन्देह 'वर्षा' आदि कवितायें बड़ी बड़ी हैं। इसलिये मैं भी इन्हें छोड़कर 'दीवाने हाली' में से कुछ कविता चुनकर भेजता हूँ। निबन्ध का अनुवाद भी पीछे से भेजूंगा। यहाँ एक जगह राजतरंगिणी है। किसी सुन्दर कथा के लिये उसे देलूँगा। यदि कोई हाथ आ गई तो लिख भेजूंगा। कथासरित्सागर भी मैंने देखा, पर वह यहां है नहीं। उसका अनुवाद भी हो रहा है। ____ मैं अभी वृद्ध नहीं हुआ। वात्स्यायन कामसूत्र मैंने पढ़े हैं और कई बार पढ़े हैं। वे मेरे पास है भी। परन्तु आपके तरुणोपदेश में निरा वही विषय तो नहीं होगा। उसमें तो और भी बहुत सी बहुमूल्य और उपयोगी शिक्षायें होंगी। अस्तु, यदि उसके छपाने में किसी विपत्ति की आशंका है तो रहने दीजिए। परमात्मा न करे कि आप किसी बाधा में फंस जायें। आजकल का कानून बड़ा कुटिल है। विद्यालय के मन्त्री को आपने लिखा अच्छा किया। यही समुचित और नीति- संगत था। परन्तु वहाँ से कुछ अच्छा परिणाम निकलने की आशा नहीं। कमेटी के दो एक आदमियों को छोड़कर बाकी की बिलकुल यही दशा है कि-