पृष्ठ:धर्मपुत्र.djvu/११२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

से चले जाइए।" 93 पीछे को देखा। दिलीप ने पास पहुँचकर कहा, “इस समय आप यहाँ क्यों आए हैं? कृपा कर घर चले जाइए।" डाक्टर ने कहा, “दिलीप, मैं बाप होकर बेटे से यह नहीं पूछता कि वह इतनी भीड़ को लेकर यहाँ क्यों आया है, फिर बेटा बाप से क्यों जवाब तलब करता है? हर एक आदमी का जुदा-जुदा मतलब होता है, जुदा-जुदा उद्देश्य होता है। तुम्हारा उद्देश्य कुछ और है और मेरा कुछ और। हम दोनों के दो भिन्न मार्ग हैं। वह मैंने जान लिया है, तुमसे कुछ कहना बेकार है; और अब तुम यह जान लो, मुझसे भी कुछ कहना बेकार है।" “आप समझते नहीं हैं बाबूजी, हम इस रंगमहल में आग लगाने जा रहे हैं। आप यहाँ “मैं खूब समझता हूँ। शैतान तुम पर सवार है। परन्तु बेटे के पाप में माँ-बाप का भी हिस्सा है। यहाँ रंगमहल में एक बानू रहती हैं। वे अकेली महिला हैं। उनकी प्राण-रक्षा करने या उन्हीं के साथ जल मरने के लिए हम लोग आए हैं। तुम भी यह समझ लो।" "आप गलती कर रहे हैं बाबूजी।" “गलती तो हमने तभी की जब तुम्हें हम लोगों ने छाती से लगाकर दूध पिलाकर पाला। अब तो उस गलती का परिमार्जन कर रहे हैं, दिलीप!" अभी बाप-बेटे की ये बातें हो रही थीं, अरुणादेवी भीतरी आँगन लाँघ चुकी थीं। दिलीप दौड़कर उनके पास पहुँचा और माँ के पैर पकड़कर कहा, “माँ, यहाँ से चली जाओ, चली जाओ माँ!' अरुणा का चेहरा पत्थर की भाँति कठोर हो गया। उन्होंने कहा, “दिलीप, मुझे तू मत छू, अधर्मी, दूर हो मेरी आँखों से!" दिलीप ने आज तक अरुणा की वह मूर्ति न देखी थी। वह सकते की हालत में हो गया। अरुणा आगे बढ़कर भीतरी दालान में चली गई। इसी समय उन्हें सामने बानू खड़ी दिखाई दी। बानू का मुँह सफेद हो रहा था, रक्त की एक बूंद भी उसके मुँह पर न थी। वह दौड़कर अरुणादेवी के पास आकर बोली, “इस समय तुम यहाँ क्यों आईं? तुमने यह क्या किया बहिन?" किन्तु अरुणा ने लपककर बानू को छाती से लगा लिया। इसी समय लपकते हुए डाक्टर अमृतराय पहुँच गए। उन्होंने कहा, “बन्दूक कहाँ है बानू?' "भाईजान, आप बहिन को लेकर अभी चले जाइए। मुझ पर जो बीतेगा मैं देख लूंगी। हाथ जोड़ती हूँ भाईजान!” लेकिन डाक्टर लपककर भीतर घुस गए। बन्दूक उन्होंने उठा ली और जल्दी-जल्दी कारतूस डालकर उसकी नाल दिलीप की ओर सीधी की। “यह क्या?" बानू ने बन्दूक की नाल काँपते हुए दोनों हाथ में पकड़कर कहा, “वे सैकड़ों हैं, एक बन्दूक से किसे-किसे मारेंगे आप?" “औरों से मुझे सरोकार नहीं, मैं दिलीप को इस शैतान बेटे को गोली मार दूं तो बस।" उन्होंने बन्दूक सीधी की। दिलीप सामने सीधा तना खड़ा था। उसका नाम सुनते ही