पृष्ठ:धर्मपुत्र.djvu/१४

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जार्जेट की साड़ी में छनकर उसका धवल कुन्दकली के समान नवल रूप आलोक बिखेर रहा था। आँखें उसकी रोते-रोते सूजकर फूल गई थीं—वे लाल चोट हो रही थीं—फिर उनमें व्यक्त क्रुद्ध सिंहनी के समान तीखी दृष्टि डाक्टर पर केन्द्रित थी। हीरे के समूचे टुकड़े से जैसे उसका मुख-चन्द्र निर्मित हुआ था। वह उज्ज्वल गौरवर्ण और सुडौल शरीर ऐसा था, जैसा डाक्टर ने अपने जीवन में आज तक नहीं देखा था। उस रूप में माधुर्य के साथ ही एक तेज―गौरव और प्रताप व्यक्त हो रहा था, जिससे अभिभूत होकर डाक्टर की वाणी जड़ हो गई। उसके मुँह से बोली न निकली। उस तेज को जैसे न सहकर उसकी आँखें नीचे को झुक गईं।

बानू ने बात शुरू की। उसने कहा:

"आपने इन्कार तो किया नहीं सिर्फ सोचने का वक्त माँगा है, उम्मीद है, सौदा पट जाएगा। सौदा तो बड़े अब्बा ने कर ही लिया है, लेकिन मैं कुछ अखलाकी सवाल आपसे करूँगी।"

“फरमाइए।"

“मेरा यह काम, जिसकी वजह से मैं इस ज़िल्लत में फँस गई हूँ—आप कैसा समझते हैं?"

“मैं समझता हूँ, आपके साथ धोखा और विश्वासघात हुआ है।"

“जी नहीं, मैं कोई अनपढ़—बेवकूफ और दहकानी, बेसमझ लड़की नहीं हूँ। कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी की ग्रेजुएट हूँ, और इसी साल मैंने मनोविज्ञान में एम.ए की डिग्री ली है।"

"तब तो..."

“कहती हूँ, मैंने अपने पसन्द का जीवन-साथी चुना और इत्मीनान से अपने-आपको उसे सौंप दिया। लेकिन बड़े अब्बा को यह पसन्द नहीं हुआ। क्योंकि जिसे मैंने अपने को सौंपा, वह महज़ एक प्रोफेसर है, नवाब नहीं है—नवाबज़ादा भी नहीं है। उसकी कोई खानदानी हिस्ट्री भी नहीं है। बड़े अब्बा की बहुत भारी स्टेट है—वे चाहते तो उन्हीं को सब स्टेट देकर नवाब बना सकते थे। मगर उन्होंने आपको आधी जायदाद देना कबूल किया पर उन्हें नहीं। वे नवाब वज़ीर अली खाँ बहादुर से मेरी शादी कर रहे हैं जिनकी तीन बीवियाँ पहले से मौजूद हैं, और जिनकी सूरत ठीक गैंडे के जैसी है, उम्र भी माशा अल्लाह, पचास के ऊपर होगी।"

"आप क्या यह शादी पसन्द नहीं करतीं?"

"कैसे कर सकती हूँ—जबकि मैं अपने-आपको किसी को दे चुकी; फिर कहीं कुछ तुक भी तो हो!"

"तो फिर आप इन्कार कर दीजिए। आप बालिग हैं और उन्हीं से शादी कीजिए जिन्हें आपने अपना शौहर चुना है।"

“मुझे कोई कानूनी दिक्कत नहीं है, उन्होंने भी यही कहा था। मगर मैं ऐसा नहीं कर सकती?"

“क्यों नहीं कर सकतीं?"

“इसलिए कि बड़े अब्बा ने मुझे बचपन से अपना प्यार दिया है। जब अब्बा न रहे तो मुझे गोद में लेकर वे यही कहकर दिल की आग बुझाते रहे कि―तू उसी का नूर है। बड़े