पृष्ठ:धर्मपुत्र.djvu/२२

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कि एकाएक भंग हो जाए। मैं उसका चिरकृतज्ञ हूँ, अरुणा! पर जिस तरह पैर पकड़कर मैं उससे क्षमा माँग सका, तुमसे न माँग सकूँगा।"

“कैसे माँग सकोगे भला! मेरे-तुम्हारे बीच इतना अन्तर है, इतना द्विभाव है कि तुम अपराधी बनो और मैं क्षमा करूँ? न, न, इस नाटक की ज़रूरत नहीं है। तुम अपराध करोगे तो भी, पाप करोगे तो भी, पुण्य करोगे तो भी सबमें मेरा हिस्सा है। हम-तुम दो थोड़े ही हैं।"

"नहीं हैं, न रह सकते हैं।"

इतना कहकर डाक्टर ने अरुणा को आलिंगन-पाश में बाँध लिया, और पति-पत्नी दोनों का मन जैसे स्नानपूत हो उठा।

नवाब मुश्ताक अहमद सालारजंग बहादुर ने सारी योजना अत्यधिक सावधानी और दूरदर्शिता से तैयार की थी। डाक्टर की इस बच्चेवाली घटना में कुछ रहस्य है, इसका किसी को सानो-गुमान भी नहीं हुआ। इसका श्रेय वास्तव में हुस्नबानू के असाधारण दृढ़ स्वभाव को था। उसने किसी भी चेष्टा से यह प्रकट नहीं होने दिया कि इस करुण नाटक में उसका भी कुछ भाग है। निस्सन्देह डाक्टर को वह प्यार करने लगी थी। कुछ उम्र और प्रकृति के तकाज़े की ही बात नहीं, डाक्टर का व्यक्तित्व ही ऐसा था। परन्तु उसने जिस दार्शनिक ढंग से डाक्टर को उस प्रेम-प्रसाद से विरत किया, उससे वह स्वयं विरत न हो सकी। डाक्टर के प्रति उसका असाधारण विमोह उसकी सम्पूर्ण चेतना को आहत कर गया था। वह घाव उसका न भरना था, न भरा। पर उसने अपने संकेत से, व्यंजना से यह बात प्रकट न होने दी। वह जैसे डाक्टर से विशेष परिचित ही नहीं है, यही भाव प्रकट करती रही। बहुत कम एकाध शब्द, डाक्टर से मिलने पर वह बोलती। मुलाकात के प्रत्येक सुयोग को टाल जाती। प्रपिता के एक आत्मीय के पुत्र के प्रति मर्यादा से जितनी आत्मीयता प्रकट करनी चाहिए उतनी ही वह प्रकट करती थी। और डाक्टर का भी यही हाल था। डाक्टर ने अपनी पत्नी से तथा बानू से और अपने-आपसे भी कह-सुन तो बहुत कुछ लिया था, पर बाँधकर रखने से प्यासे की नदी के तीर तक जाने की प्रवृत्ति रोकी नहीं जा सकती। फिर भी डाक्टर ने शालीनता का परिचय दिया था। अरुणा इस अवश शक्ति को जानती थी। स्त्री होने के नाते उसे भुलावे में रखना सम्भव न था, परन्तु उसने भी अपने पति और बानू दोनों ही के प्रति अति उदार भाव धारण कर लिया था। इन सब कारणों से एक असह्य कड़वाहट होते-होते रह गई थी। और सब काम ठीक-ठीक आगे बढ़ रहा था।

निस्सन्देह नवाब मुश्ताक अहमद की बुजुर्गी और बुद्धि तथा धैर्य ने बहुत काम किया था। यद्यपि खानदानी प्रतिष्ठा के नाम पर पुत्री को इतने संकट में डालने की उनकी भावना का शायद आप अनुमोदन न करें। परन्तु आप यह भी तो सोचें कि आप पुराने ज़माने के खानदानी रईस हों, आपका व्यापक सुनाम, ख्याति हो, आप आधी शताब्दी तक अपने समाज के शीर्षस्थानीय रहे हों, आपकी पुत्री-पौत्री आपसे अज्ञात किसी पुरुष के सम्पर्क में आकर गर्भवती हो जाए—विवाह से पूर्व, तो आप क्या करेंगे? सम्भव है आप दिमाग का सन्तुलन खो दें और आप उस पुत्री का वध कर दें, घर से निकाल दें, उसका मुँह देखना पसन्द न करें। या आप कोई गुप्त पाप करके कुकृत्य पर परदा डाल दें। पर नवाब ने यह सब कुछ नहीं किया। वह एक बूढ़ा महापुरुष था, और उसकी पौत्री हुस्नबानू एक असाधारण