पृष्ठ:धर्मपुत्र.djvu/२६

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“अच्छा, तो मैं यहाँ हूँ, तू नीचे जाकर खा-पीकर आराम कर।"

दासी के जाने पर उसने संकेत से बानू को बुलाकर कहा, “इस कमरे में है, जाओ न बहिन, मैं यहाँ पहरे पर हूँ, कोई आ न पाएगा।"

हुस्नबानू लड़खड़ाते पैरों से किन्तु आँधी की भाँति कमरे में घुस गई। बालक को उसने उठाकर छाती से लगा लिया—“अरे मेरे लाल, अरे मेरे लख्ते जिगर, ओ रे मेरे कलेजे के टुकड़े! अब तो तुझे अपनी माँ को देखने-पहचानने का हक नहीं है। या अल्लाह, यह भी कैसी दुनिया है! मगर खैर, तू सलामत रहे, लाख ज़ंजीरों में बँधी रहकर भी तुझे देखती रहूँगी। अपना न कह सकूँगी, तो भी तू मेरा है, मेरा है, मेरा है?...”

उसने बालक के सैकड़ों चुम्बन ले डाले। उसे ज़ोर से छाती से लगा लिया। बालक ज़ोर से रो पड़ा।

अरुणा ने देखा, हुस्नबानू बेहोश होने लगी है। उसने उसकी गोद से बालक को लेकर, बानू को पलंग पर लिटाकर उसकी गोद में बालक को लिटा दिया; और उसके सिरहाने बैठ, जांघ पर उसका सिर रख अँगुलियों से बाल सहलाने लगी।

7

नवाब वज़ीर अली खाँ माशाअल्लाह एक दिलचस्प 'फिगर' थे व दिलफेंक रईस। पुराने टाइप में नए फैशन का एडीशन। उम्र पचपन साल, क्लीनशेव्ड, कद छ: फुट दो इंच, रंग में डूबी बत्तीसी, खास पेरिस में तैयार की हुई, समूची। उम्दा खिज़ाब से ज़रा नीली झलक लिए हुए बाल। लम्बी शेरवानी, ढीला पायजामा, पम्प शू और सिर पर फैज़ टोपी।

स्वयं ड्राइव करते थे। रफ्तार पाँच मील प्रति घण्टा। ड्राइवर बगल में बैठता। नवाब पूछते, “अब?”

“सरकार सीधे, फिर पचास कदम बाएँ, सीधे।” और गाड़ी चलती रहती। मोटर किसी ज़माने की खरीद थी। एक बड़े छपरखट के बराबर बहुत ऊँची सीट, बारह सवारी और उनका सब सामान मज़े में उसमें समा सकता था। उस ज़माने में स्टेशन वैगन ईजाद नहीं हुई की, रईसों की कारें यों ही ग्राण्डील हुआ करती थीं। और इसी मस्त चाल से झूमती चलती थीं।

नवाब की तीन महल पहले थीं। चौथी यह हुस्नबानू। पहली थी एक बुढ़िया, दायमुल-मरीज़ा। नवाब जब-तब सिर्फ 'खैरसल्ला’ पूछने उसके पास जाते। घंटा, आध घंटा बैठकर चले आते, बस। रहती थीं सब अलग-अलग।

दूसरी थी ज़रा ठाठदार। नाम था ज़ीनतुन्निसा बेगम। बड़े बाप की बेटी थी, इकलौती। लाखों की सम्पत्ति, कोठी और नकदी बाप के उत्तराधिकार में मिली थी। बाप ज़िन्दा नहीं थे, बूढ़ी माँ थी। माँ के पास ही बाप की कोठी में रहती थी। उम्र थी कोई पैंतीस के अनकरीब। रंग खूब गोरा, दुबली-पतली, मिज़ाज़ की तेज़, ज़बान की तीखी। आजकल नवाब से झड़प चल रही थी। नवाब ने तलाक दे दिया था और बेगम ने दो लाख रुपए के