पृष्ठ:धर्मपुत्र.djvu/२८

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छपरखटनुमा कार में उनके घर छोड़कर, कोई दो बजे अपने घर आकर सो जाते थे। यह प्राय: नवाब की दिनचर्या थी।

नवाब का कोई लड़का-बाला न था। बदनाम करने वाले कहते थे कि नवाब किसी काबिल ही नहीं हैं—बेगमों से हँसी-दिल्लगी, गाने-बजाने, सिनेमा दिखाने, खाने-पिलाने तक ही ताल्लुक रखते हैं। मगर नवाब, जब कभी बात सामने आती तो अपनी कूव्वते-मर्दानगी का खूब बढ़-चढ़कर ज़िक्र किया करते थे। आज़माइश करने के लिए लोगों को चैलेंज करते थे।

ऐसे ही थे हमारे लायक-फायक रईस नवाब वज़ीर अलीखाँ बहादुर, जो हुस्नबानू के शौहर हुए। रोज़ा-नमाज़ की मज़हबी इल्लत से पाक-साफ थे। हाँ, दान-खैरात फराखदिली से करते थे। दोस्तों को दावत देने में भी कोताही न करते थे।

इस उम्र में शादी करने पर भी नवाब ने धूमधाम में कोई कसर न रखी। हफ्तों तक दावतों, मजलिसों और नज़रानों-तोहफों का दौर चलता रहा। खूब जल्से हुए, गाने-बजाने हुए, बोतलें खाली हुईं। नवाब ने दो लाख रुपया शादी पर खर्च कर दिया। हुस्न बानू को एक नया महल मिला और अब 'नर', नवाब की चहेती छोटी बेगम के वक्त के दो हिस्से हो गए। नवाब एक दिन यहाँ और दूसरे दिन वहाँ आने-जाने लगे, लेकिन यह आना-जाना-भर ही रहा। नवाब रात को सोते थे अपनी ही कोठी में अकेले। कमरे में ताला बन्द करके, संगीनों के पहरे में। आप पूछेंगे—यह क्यों? जनाब, यह इसलिए कि वे नवाब हैं—कुछ आप जैसे मामूली मियाँ-जोरू नहीं। नवाबों के तो सब ठाठ ही निराले होते हैं।

सुबह ही नवाब ने चाय-पानी से फारिग होकर बाग उठाई। घोड़ी की नहीं,मोटर की! चाल वही पाँच मील फी घण्टा। साथ में ड्राइवर, खिदमतगार और एक सिपाही बन्दूक-सहित। सबसे पहले पहुँचे महकमे इस्तिमरारदारी के हाकिम के बंगले पर। हाकिम ने उठकर स्वागत किया, खैराफियत पूछी, नई शादी की मुबारकबादियाँ दीं और इस वक्त सुबह-सुबह आने का कारण पूछा।

नवाब ने कहा, “मैं यह कसद करके आया हूँ कि आपकी ड्योढ़ियों पर ज़हर खाकर जान हलाक कर लूँ!”

हाकिम ने हँसकर पूछा, “क्यों-क्यों, खैर तो है?"

“खैर कहाँ? कहर बरसा दिया आपने?”

"अयं! मैंने?"

“जी हाँ, आपने उस ससुरी हरामज़ादी ज़ीनत की बच्ची को डिग्री दे दी दो लाख रुपयों की, और हुक्म भी दे दिया कि जायदाद कुर्क करके वसूल कर ले।”

“तो मैं क्या कर सकता था, नवाब साहब! मैं तो महज़ कानून का कीड़ा हूँ, बेगम मेहर तो आपने ही बाँधा था, डिग्री तो उन्हें मिलनी ही थी।”

“तो वह तो अब मज़े में दो लाख रुपया वसूल करके मज़ा उड़ाएगी और मैं तबाह हो जाऊँगा! आप तो जानते ही हैं इस वक्त रियासत की हालत क्या हो रही है।”

मैंने तो कई बार आपको दोस्ताना सलाह दी कि खर्च कम कीजिए और एकाध इलाका निकालकर कर्जे को पाक-साफ कर दीजिए। मगर आप हैं कि सुनते ही नहीं।

“तो इसलिए आप मुझे लूट लेंगे, मेरे ऊपर डाका डालेंगे? वाह साहब, वाह, यह