पृष्ठ:धर्मपुत्र.djvu/२९

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आपने मेरे साथ अच्छा सलूक किया!"

हाकिम साहब हँस पड़े। उन्होंने कहा, “मुझे आपसे हमदर्दी है नवाब साहब, लेकिन मैं कर भी क्या सकता था? डिग्री तो मुझे देनी ही पड़ी।"

"तो मुझे भी ज़हर दे दीजिए।"

“कमाल, यह क्या फरमाते हैं, आप नवाब साहब! अभी तो आपने नई शादी की है!"

“मगर यह पुरानी इल्लत जो गले में हड्डी की तरह अटक रही है, इसका भी तो कुछ हैसनेस्त होना चाहिए।"

“इसके लिए कानूनन तो कुछ नहीं हो सकता। मगर देखिए, यह मियाँ-बीवी का मामला है। बेगम भी अब बच्ची नहीं हैं। चालीस के छोर पर पहुँच रही हैं। अब तलाक पाकर इस उम्र में वे कहाँ जाएँगी? बेआबरू ही होंगी। और आपसे अच्छा शौहर उन्हें कहाँ मिलेगा? मेरे ख्याल में आप बेगम से सुलह कर लें। मिज़ाज़ उनका तीखा ज़रूर है,मगर फौलाद को भी नर्म करने की हिकमत जानते हैं।"

"जी हाँ, जानता सब कुछ हूँ, लेकिन आप भी तो कुछ कीजिए।"

“मैं क्या करूँ?"

"तलवार तो आपने चलाई है, अब मरहम भी आप ही रखिए।"

“कहिए, मैं क्या करूँ?"

"बस, आपने जो इस वक्त मुबारक बातें कही हैं, वही चलकर बेगम से कह दीजिए। यह हकीकत ही है कि उस जैसी मथचढ़ी औरत को मेरे जैसा आदमी मिल नहीं सकता। चिराग लेकर ढूँढ़े, तो भी नहीं!"

"तो यह तो मियाँ-बीवी का मामला ठहरा, मैं क्या करूँ?"

“कहना आप ही को होगा। वह भी ज़रा नमक-मिर्च लगाकर।"

"लेकिन आप भी तो उन्हें रिझाइए, बहलाइए, मनाइए।"

"बखुदा, आप एक बार चलें भी, मैं सब बानक बना लूँगा।"

हाकिम ने स्वीकृति दी तो नवाब ने कहा, “देर की सनद नहीं, अभी चलिए। कचहरी की तो आज छुट्टी ही है।”

"हाँ, छुट्टी तो है, लेकिन...”

“अब यह आपकी ज़्यादती है हुजूर, उठिए, अभी चलिए।"

नवाब की बात हाकिम साहब न टाल सके। कपड़े पहनकर मोटर में आ जमे। मोटर चली उसी तरह पाँच मील फी घण्टे की रफ्तार से। ड्राइवर राह दिखाता चला। नवाब ने व्हील हाथ में लेकर कहा, “खबरदार रहो, देखो सामने कौन है?" उन्होंने चश्मे से घूरकर सड़क पर नज़र फेंकी। “गधा था हुजूर, खिसक गया एक ओर।"

"लेकिन अब?"

"बस, ज़रा और बढ़कर बाईं ओर।” मोटर आहिस्ता से बाईं सड़क पर मुड़ गई। नवाब ने कहा, “अब, लेकिन वह नामाकूल साइकल-वाला..."

हार्न दीजिए हुजूर, ब्रेक क्यों लगा दिया? हाँ,अब दाहिनी ओर मोड़ लेकर।'

नवाब ने कहा, “अब?"