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पृष्ठ:धर्मपुत्र.djvu/५४

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करवट बदलकर पड़ रही।

दिलीप ने करुणा को पुकारकर कहा–

"करुणा, तनिक यहाँ आकर बैठो, माँ के पास, योगिराज को लाता हूँ।"

योगिराज ने कमरे में पदार्पण किया। आयु कोई तीस साल। काली घुघराली बलदार लटकती लटें सुगन्धित तेल से तर, रेशमी धोती और सिल्की कुर्ता, कैनवास का जूता, चाँदी की मूंठ का बेंत। आँखों में सुरमा, क्लीनशेव्ड, फूलों के गजरे से लदे हुए।

दिलीप के संग सुशील भी था। करुणा पहले ही वहाँ थी। योगिराज ने एक दृष्टि में अरुणादेवी को आरोग्य किया या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता, परन्तु अरुणादेवी ने एक ही दृष्टि में योगिराज को पहचान लिया। वे बड़ी देर तक आँखें फाड़कर योगिराज को कुछ देर देखती रहीं। परन्तु मुँह से कुछ बोली नहीं।

सुशील ने अब योगिराज को बनाना शुरू किया। वह इन पाखंडियों का प्रबल विरोधी था। पहले ही वह इनकी महिमा सुन चुका था। अब उनके यह ठाठ देखकर तो वह जैसे जल-भुनकर खाक हो गया। उसने नाटकीय ढंग से महात्माजी को अत्यन्त झुककर प्रणाम किया। उसका यह ढंग देख करुणा मुँह फेरकर हँसने लगी।

सुशील ने बड़ी शालीनता से हाथ जोड़कर पूछा, "कहाँ से आगमन हो रहा है महाराज?"

"हम तो मानसरोवर से आ रहे हैं।"

"अहा हा! मानसरोवर, भला हम-से जीवों को कहाँ नसीब! कितने दिन निवास रहा वहाँ महाराज का?"

"कैसे कहें? कुछ हिसाब तो रखा नहीं। डेढ़ सौ बरस भी हो सकता है, कुछ कम भी, अधिक भी।"

सुशील ने अब आश्चर्य से आँखें फाड़कर आश्चर्य और भक्ति की भावना-भंगी दिखाते हुए कहा, "धन्य हैं, महाराज की आयु अब क्या होगी?"

योगिराज हँस दिए। बोले, "आयु की बात योगिराज नहीं बताते हैं बच्चा!"

सुशील ने कहा, "बच्चा हूँ आपका, मुझे तो बता ही दीजिए।"

"अच्छा, अच्छा, फिर कभी पूछना। तुम्हें बता देंगे। सबके सामने कहने की बात नहीं है।"

"जैसी आज्ञा–बालों में आप कौन-सा हेअर ऑयल काम में लाते हैं? बड़ी ही प्यारी गन्ध है!"

"हमने इधर तो पचास-साठ साल से बालों में तेल दिया ही नहीं।"

"परन्तु महाराज, बाल तो तेल से एकदम तर-ब-तर हैं।"

"हाँ आँ, यह रहस्य, भैया, तुम समझ न सकोगे। हम जब प्राणायाम कर प्राणों को ऊध्व आवाहन कर ब्रह्मरन्ध्र में रुद्ध करते हैं, तो उससे बाल स्वयं मस्तिष्क की चर्बी खींचने लगते हैं–उसी से तुम्हें हमारे बाल चिकने-चिकने दिखते हैं।"

"चमत्कार है महाराज! और इनमें जैसोमिन, वरबीना, सिटरन के एसेन्सों की लपट उठ-उठकर जो बरबस नाक में घुसी आ रही है सो?"

योगिराज तनिक हतप्रभ हुए। अब तक अरुणादेवी चुपचाप यह तमाशा देख रही थीं–