पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१०१

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४३ पद की पुस्तक । ७। तब वे बोले कि उम पुरुष ने हमें संकेतौ से हमारा और हमारे कुटुम्म का समाचार पूछा कि क्या तुम्हारा पिता अब लो जीता है क्या तुम्हारा और कोई भाई है से हम ने बातों के व्यवहार के समान उसे कहा क्या हम निश्चय जानते थे कि वह हमें कहेगा कि अपने भाई को ले आया॥८ तब यहूदाह ने अपने पिता इमराएल से कहा कि इस तरुण को मेरे साथ कर दीजिये और हम उट चलेगे जिसने हम और आप और हमारे बालक जीब और न मरं ।। मैं उम का विचवई हंगा आप मेरे हाथ से उसे लीजि- योजा में उसे आप पास न लाऊ और आप के आगे न धरूं तो आप यह दोष नझ पर मदा धरिये॥ १। क्योंकि जो हम विलंब न करते तो निश्चय अब लो दशहरा के फिर आये होते ॥ १.१। तब उन के पिताइस- राएल ने उन्हें कहा कि जो अय योंहीं है ना यों करो कि इम देश के अके से अच्छे फल अपने पात्रों में रख ले और उस पुरुष के लिये भर ले जाया थोड़ा निधास थोड़ा मधु कुक मुगंध द्रव्य और बोल और बातम और बदाम॥ १२ । चौर दूना रोकड़ हाथ में लेना और बुह रोकड़जा तुम्हारे बारों में फर लाया गया है अपने हाथ में फर ले जाओ क्या जाने भूल से हुत्रा हे। ॥ २३। अपने भाई को भी लेगो उठो और उस पुरुष पास जाओ ॥ १४। और मामी ईश्वर उस परुष को तुम पर दयाल करे जिमतें वुह तुम्हारे दूसरे भाई और विनयमौन को छोड़ द वे और जो मैं निबंश हुआ तो हुआ ॥ १५ । तब उन्हों ने वुह भेट लिया और दूने रोकड़ कर अपने हाथ में बिनयमीन समेन लिया और उठे और मिस्र का उतर चले और यूसुफ के अाग जा खड़े हए ॥ ५६ । जब यसुफ ने बिनवमौन का उन के संग देखा तो उस ने अपने घर के प्रधान को कहा कि इन पुरुषों को घर में ले जा और कुछ मारके सिद्ध कर क्येांकि ये मनुष्य दो पहर को मेरे संग खायंग। १.७ । सो जैसा कि यूसुफ ने कहा था उस पुरुष ने वैसाही किया और वुह उन्हें यूसुफ के घर में लाया॥ १८। तब वे यूसुफ़ के घर में पहुंचाये जाने से डर गय और उन्हों ने कहा कि उस रोकड़ के कारण जो पहिले बार हमारे बारां में फिर गया हम यहां पहुंचाये गये हैं जिसने वुह हमारे विरुद्ध एक कारण ढूंढे चार हम पर लपके छोर हमें पकड़ के दाम बनावे और हमारे गदहा को कौन लेवे ॥