पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१५

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३ प] की पुस्तक । पसुलियों में से एक निकाली और उस की संनी मांस भर दिया ॥ २२ और परमेश्वर ईश्वर ने मनुष्य की उम् पसली से जो उम ने लिई थी एक नारी बनाई और उसे नर पास लाया ॥ २३ । नब नर बोला यह तो मेरी हड़ियों में की हड्डी और मेरे माम में का मांस बुह नारी कहलावेगो क्योंकि यह नर से निकाली गई ॥ २४। इस लिये मनुष्य अपने माता पिता को छोड़ेगा और अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक माम होंगे ॥ २५ २५ औऔर मनुष्य चार उम् की पत्नी दोनों के दोनों नग्न थे और लजित न घे॥ ३तीसरा पर्य। ब स भूमि के हर एक पशु से जिसे परमेश्वर ईश्वर ने बनाया था धर्म था और उस ने स्त्री से कहा क्या निश्चय ईकार ने कहा है कि तुम इस बारी के हर एक पेड़ से न खाना ?॥ २। स्नी ने मप से कहा कि हम तो इस बारी के पेड़ों का फल खाते हैं। ३ । परन्तु उम पेड़ का फल जो बारी के बीच में है ईश्वर ने कहा है कि तुम उससे न खाना और न कूना न हो कि मर जाग्यो । ४। तब सर्प ने स्त्रो से कहा कि तुम निश्चय न मरोगे॥ ५ । क्योंकि ईश्वर ज्ञानता है कि जिस दिन तुम उम्मे खाओगे तुम्हारी अांखें खुल जायेंगी और तुम भले और बुरे की पहिचान में ईश्वर के समान हो जाओगे । ई। और जब स्त्री ने देखा कि बुह पेड़ खाने में सुखाद और दृष्टि में सुन्दर और बुद्धि देने के योग्य है तो उस के फल में से लिया और खाया और अपने पति को भी दिया और उस ने खाया ॥ ७। तब उन दोनों की आंखें खुल गई और वे जान गये कि हम नंगे हैं से उन्हों ने गलर के पन्नों को निला के मीना और अपने लिये पढ़ना बनाया । ८। और दिन के टढे में उन्हों ने परमेश्वर ईश्वर का शब्द जो बारी में चलता था मुना तब मनुष्य की पत्नी ने अपने को परमेश्वर ईश्वर के आगे से बारीके पेड़ों में छिपाया ॥ ६। तब परमेश्वर ईश्वर ने मनुष्य को पुकारा और कहा कि बोला कि मैं ने तेरा शब्द बारी में सुना और डरा क्योंकि मे नंगा था इम कारण मैं ने अपने को छिपाया॥ ११ ॥ और उस