पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१५०

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१४० यात्रा [२५ पर्न तब अहम के प्रधान बिस्मित हांग माअब के बलवंतों को थर्थराहट पकड़ेगौ कनान के समस्त बासौ गल जायेंगे । १६ । उन पर भय और डर पड़ेगा तेरी भुजा के महत्व से वे पन्थर की नाई रह जायेगे जब लो तेरे लोग पार न जाव हे परमेश्वर जब लो तेरे लोग जिन्हें तू ने मेल लिया पार न जावें ॥ १७। तू उन्हें भीतर लाबेगा और अपने अधिकार के पहाड़ पर जो हे परमेश्वर तू ने अपने निवास के लिये बनाया है और पवित्र स्थान हे परमेश्वर जिसे तेरे हाथों ने स्थापा है उस स्थान में तू उन्हें बायेगा। ५८ ! परमेम्पर सनातन सनातन राज्य करेगा। १६ । क्यांकि फिर ऊन का घोड़ा उस के रथों और उस के घोड़ चढ़े समेत में पैठा परंतु इसराएल के संतान समुद्र के मध्य से मूखे सूखे चले गये । २.! तब हारून की बहिन मिरयम श्रागमज्ञानिनी ने मृदंग अपने हाथ में लिया और सब स्त्री ढालों के साथ नाचती हुई उस के पीछे चलों ॥ २१ । और मिरयम ने उन्हें उत्तर दिया कि परमेश्वर का गान करो क्योंकि वह अति महान है उस ने घोड़े को उस के चढ़ धैये समेत समुद्र में नष्ट किया ॥ २२ । और मसा इसराएल को लाल समुद्र से ले गया और वे सूर के बन में गये और वे तीन दिन लो वन में चले गये और पानी न पाया॥ २३। और जब वे मारः में आये तब मारः का पानी पी न सके क्यांकि बुह कड़ा था इस कारण बुह मारः कहाया ॥ २४ । तब लोग यह कहि के मूसा के विरोध में कुड़कुड़ाने लगे कि हम क्या पीयें ॥ २५॥ उस ने परमेश्वर से दोहाई दिई और परमेश्वर ने उसे एक पेड़ दिखाया जब उस ने उसे पानियों में डाला नब पानी मीठे हो गये वहां उस ने उन के लिये एक बिधि और व्यवस्था बनाई और वहां उस ने उन्हें परखा। २६ । और कहा कि यदि तू परमेश्वर अपने ईश्वर का शब्द ध्यान से मुने और जो उस की दृष्टि में अच्छा है उसे करे और उस की आज्ञा पर कान धरे और उन की विधि को चेत में रक्खे तो मैं उन रोगों को जो मिसियों पर लाया तुझ पर न देऊंगा क्योंकि मैं वह परमेश्वर हं जो तुझे चंगा करता है। २७। वे फिर लीम को जहां जल के बारह कूएं और खजूर के सत्तर वृक्ष थे आये और उन्होंने जल के तौर डेरा किया ।