पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/२४३

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१६ पद] की पक्षका । और जब तू अपना खेत काटे तब खत के कोने को सर्वत्र मत काट ले और न अपने खेत का बिन्ना कर॥ १.। और तु अपने दाख केर मत दिन और न अपने हर एक अंगूर को बटोर उन्ह कंगालों और परदेशी के लिये छोड़ मैं परमेश्वर तुम्हारा ईश्वर ई॥ ११॥ तुम चोरी मत करो और मठाई से व्यवहार न करो एक दूसरे से झठ मत बोलो ॥ १२। और मेरा नाम ले के झुठो किरिया मत खाओ तू अपने ईश्वर के नाम को अपवित्र मत कर मैं परमेश्वर है। १३ । अपने परोमी से कूल मत कर और उसो कुछ मान चुरा बनिहारों को बनी रात भर बिहान लो तेरे पाम न रह जाय ॥ १४ । बहिरे को दुर्वचन मत कह तू अंधे के आगे ठोकर खाने को बस्तु मन रख परंतु अपने ईश्वर से डरना रह में परमेश्वर हं॥ १५॥ तुम न्याय में अधर्म मत करो त कंगाल का पक्ष मत कर और बड़े को बड़ाई के लिय प्रतिष्ठा मत दे परंतु धर्म से अपने परोसी का न्याय कर ॥ १६। अपने लोगों में लुतड़ा बन के मत आया जाया कर और अपने परोपी के लोहू के विरोध में मत खड़ा हो में परमेश्वर हं॥ १७॥ मन में अपने भाई से वैर मत रखत अपने परोमी को किसी भाति से दपट दे और उस पर पाप मन कोड़। २८। तू अपने लोगों के संतानों से बैर मत रख और अपना पलरा मन ले परंतु अपने परोसी को अपने समान प्यार कर मैं परमेश्वर हं। १६। तुम मेरी विधि का पालन करो तू अपने टारों को और जातियां से मत मिलने दें तू अपने खेत में मिले हुए बीज मत बो और सूत का मिला हुआ बस्त्र मत पहिन । २. जो कोई किसी स्त्री से जो बचन दन दासो हो और छुड़ाई न गई हो और निबंध न हुई हो व्यभिचार करता है से ताड़ना पावेगावे मार डाले न जायगे इस लिये कि वुह निबंध न थी। २१ । सेो वुह परमेश्वर के लिये मंडली के तंबू के द्वार पर अपने अपराध की भेट लावे अपराध की भट एक मेढ़ा होवे। २२। और याजक उस के लिये अपराध की भर के मेले को परमेश्वर के आगे उस के पाप के लिये प्रायश्चित्त करे तब वुह अपराध जो उस ने किया है क्षमा किया जायगा । २३ । और जब तुम उस दश में पहुंचा और खाने के लिये भीति भाति के पेड़ लागार तो तुम उस के फल को अखतनः