पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/२५६

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[२५ पच्च २४८ नेब्यव्यवस्था वासियों में मुक्ति मचारो यह तुम्हारे लिये आनंद है और तुम्हें से हर एक मनुय्य अपने अपने अधिकार को और अपने घराने को फिर जाय॥ २१। पचासवां बरस तुम्हारे लिये भानंद है तुम कुल मत बोइयो न उसे जो उस में श्राप से जगे काटिया बिनसबारी हुई. दाख की लता के दाखेां को मत बोरो। १२ । क्योंकि यह आनंद है यह तुम्हारे लिये पवित्र होगा खेतों में जो बड़े तुम उसे खा । १३ । उम प्रागंद के बरस नम्में से हर एक अपने अपने अधिकार को फिर जाय ॥ १४ ॥ और यदि तू अपने परोसी के साथ बचे अथवा अपने परोसौ से मोल ले तो एक दूसरे पर अंधेर मत कीजियो । १५ । आनंद के बरसों के पौर के ममान गिन के अपने परोसौ से मोल लेना और बरसेां के प्रभ की गिनती के समान तेरे हाथ बचे ॥ १६ । बरसों को बहुताई के समान उम का माल बढ़ाइयो और बरसे की घटी के ममान उस का मेरोल घटाइया क्योंकि प्राप्त की गिनती के समान वुह तेरे हाथ बेंचता है ॥ १७ । इस लिये एक दूसरे पर अंधेर मत करो परंतु अपने ईश्वर से रियो क्योंकि मैं परमेश्वर तुम्हारा ईश्वर है॥ सो तुम मेरो बिधि को मानो और मेरे न्याय को धारण और पालन करियों और देश में कुशल से बाम करोगे॥ ५६ । और भूमि तुम्हें अपने फन देगी और तुम खाके हम होोगे और उस पर कुशल से रहा करोगे ॥ २० । और यदि तुम कहा कि हम सातवें वरस क्या खायेंगे क्योंकि न बोकेंगे न बटोरेंगे। २१। तब मैं छठवें बरस अपना आशीष नम्हें देऊंगा और उस में तीन बरस का प्राप्त होगा ॥ २२ आठवें बरस बोओ और नौवं वरस ला पुराना अनाज खार जब लो उस में अन्न फेर न होवे तव ले पुराना अन्न खाओ॥ २३ । भूमि सदा के लिये बची न जाने क्योंकि भूमि मेरी है और तुम मेरे संग परदेशी और निवामी हो॥ २४ । तुम अपने अधिकार की समस्त भूमि के लिये कुटकारा देना ॥ २४। यदि तेरा भाई कंगाल होय और कुछ अपने अधिकार में से बचे और कोई उसे छुड़ाने आवे तब बुह अपने भाई की बचौहुई छुड़ा ले॥ २६ । यदि उस मनुष्य के छुड़ाने को कोई न होवे और आप से सके॥ २७। तब उस के बेचने के बरस गिने जाब और जिस