पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३१

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१३ पर्च] की पुस्तक । जब २१ उस ने परमेश्वर के लिये एक बेदी बनाई और परमेश्वर का नाम लिया। हैं। और अविराम ने जाते जाते दक्खिन की और यात्रा किई॥१० और उस देश में अकाल पड़ा और अविराम पास करने के लिये मिस्र को उतर गया क्योंकि उस देश में बड़ा अकाल था॥ ११॥ और यों हुआ कि जब वह मित्र के निकट पहुंचा उस ने अपनी पत्नी सरी से कहा कि देख मैं जानता हूं कि तू देखने में मुन्दर स्त्री है॥ १२॥ इस लिये यों होगा कि जब मिसरी तुझे देखें वे कहेंगे कि यह उस की पत्नी है और मुझे मार डालेंगे परन्तु तुझे जीती रक्खेंगे। २३। तू कहियो कि में उस की बहिन हूँ जिसने तेरे कारण मेरा भला होय और मेरा पाण तेरे हेतु से जीता रहे ॥ १४॥ और अविराम मिस्र में जा पहुंचा तब मिसियों ने उस स्त्री को देखा कि अत्यंत सुन्दरी है॥ १५ । और फिरजन के अध्यक्षों ने भी उसे देखा और फिरजन के आगे उस का सराहना किया से उस स्त्री को फिरजन के घर में ले गये। १६ । और उम ने उस के कारण अविराम का उपकार किया और भेड़ बकरी और बैल और गदहे और दास और दासी और गधियां और ऊंट. उस ने पाये ॥ १७ । तब परमेश्वर ने फिरन पर और उम के घराने पर अविराम की पत्नी मरी के कारण बड़ी बड़ी मरियां डाली॥ १८। तब फिरजन ने अबिराम को बुला के कहा कि तू ने मुझो यह क्या किया तू ने मुझे क्यों न जताया कि वुह मेरी पत्नी है। १६ । क्यों कहा कि बुह मेरी बहिन है यहांला कि मैं ने उसे अपनी पत्नी कर लिया होता देख यह तेरी पत्नी है तू उसे ले और चला जा॥ २० । तब फिरकन ने अपने लोगों को उस के विषय में आज्ञा किई और उन्हों ने उसे और उसकी पत्नी को उस सय समेत जो उम् का था जाने दिया। १३ तेरहवां पर्च। भर अविराम मि से अपनी पत्नी और सारी सामग्री समेत र लून को अपने संग लिये हुये दक्खिन को चला ॥ और अविराम ढोर और सोना चांदी में बड़ा धनी था॥ 1 जी