पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३६१

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को पुस्तक। परमेश्वर मेरे ईश्वर ने मुझे आज्ञा किई तुम्हें मिखलाये जिस तुम उम देश में जाके जिम के अधिकारी होओगे उन का पालन करो ॥ से उन्हें धारण करो और मानो क्योंकि जातिगणों के आगे यही नम्हारी बुद्धि और समुझ है कि वे इन समस्त विधिन को सुनके कहेंगे कि निश्चय यह जाति बुद्धिमान और ज्ञानमान है॥ ७। क्योंकि कौन जातिगण ऐसी बड़ी है जिसके पास ईभर ऐसा समीप होवे जैसा परमेश्वर हमारा ईश्वर सब में जो हम उरसे मांगते हैं हमारे समीप है॥ ८॥ और कौन ऐसी बड़ी मंडली है जिसकी विधि और विचार ऐमा धम्भ का हो जैसी यह समस्त व्यवस्था जो मैं आज तुम्हारे श्रागे धरता हूं ॥ हाकेवल आप से चौकम रहो और अपने प्राण को यत्न से रकदो ऐसा म हो कि तुम उन वस्तुन को जिन्हें तेरी आखें ने देखा भूल जाओ और ऐसा न हो कि वे बातें जीवन भर में कभी तुम्हारे अंतःकरणों से जाती रहे परंतु तुम उन्हें अपने बेटी और पोतों को सिखायो । १० । जिस दिन त परमेश्वर अपने ईपर के भागे हरिब में खड़ा हुश्रा और परमेश्वर ने मुझे कहा कि लोगों को मेरे आगे एकट्टा कर और मैं उन्हें अपनी बचन सुनाऊंगा जिसने वे मेरा डर सीख जब लो वे भूमि पर जीते रहें और वे अपने लड़कों को सिखावें ॥ ११ । सेो तुम पास आय और पहाड़ के नीचे खड़े रहे और पहाड़ खर्ग के मध्य लेां अंधकार और मेघ और गाढ़ा अंधकार आग से जल रहा था । १२ । और परमेश्वर तुम्हारे ईश्वर ने उत्त अाग के मध्य में से तुम्हारे साथ वान किई तुम ने वातों का शब्द मुना परंतु मर्नि न देखो केवल शब्द । १३ । और उस ने अपनी बाचा तुम्हारे बाग वान किई जिसे उम ने तुम्हे पालन करने को आज्ञा किई दम पान्ना उम ने उन्हें पत्थर की दो परियों पर लिरहौं । १४ । और परमेश्वर ने उस समय मुझे अाज्ञा किई कि तुम्ह विधि और विचार सिखाऊं जिमने तुम उस देश में जाके जिम के तुम अधिकारी हे।ओगे उन पर चलो ॥ १.५ । सेो तुम अाप से बहुत चाकम रहेर क्योकि जिस दिन परमेश्वर ने हरिब में आग के मध्य में से तुम्हारे साथ बातें कहीं 'तुम ने किसी प्रकार का रूप न देखा॥ १६ । एसा न हे। कि तुम बिगड़ जाओ और अपने लिये खादी हुई मूर्ति किसी पुरुष अथवा स्त्री की प्रतिमा [ [AB. Si 45