पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३६६

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[५ पर्द 11 २४॥ ९५८ विवाद की अग में से तुम्हारी समस्त मंडली से महा शब्द से बातें किई और उस्म अधिक कुछ न कहा और उत्त ने उन्हें पत्थर की दो पटियां पर लिखा और उन्हें मुझे सौंपा। २३। और यो हुना कि जब तुम ने अंधकार में से यह शब्द मुना क्योंकि पहाड़ अाम से जल रहा था तम और तुम्हारी गोष्ठियां के प्रधान यार तुम्हारे प्राचीन मेरे पास आये तुम ने कहा कि देख पर मेगार हमारे ईश्वर ने अपना ऐशय और अपनी महिमा दिखाई और हम ने ग्राम के मध्य में से उस का शब्द सुना हम ने श्राज के दिन देखा कि ईश्वर मनुष्य से बानी करता है और मनुष्य जीता है। २५ । सो अब हम किस लिये मरे कि यह ऐसी बड़ी प्राग हमें भस्म करेगी यदि हम परमेश्वर अपने ईश्वर का शब्द चाब के फिर सुनगे तो हम मर ही जायगे ॥ क्यांकि समस्त शरीरों में से ऐसा कौन है जिम ने हमारे समान भाग के बीच में से जीवन ईश्वर का शब्द सुना और जोता रहा । २७ । न श्राप ही समीप जा और सब जो कुछ कि परमेश्वर हमारा ईश्वर कहे सुन और जो कुछ परमेश्वर हमारा ईश्वर हमें कहे न हम से कह हम उसे सुनके मानेगे। २८ । और जब तुम ने मुझ से कहा परमेश्वर ने तुम्हरी बातों का ब्द सुन्ना तब परमेश्वर ने मुझे कहा कि मैं ने दून लोगों की बातों का शब्द जो उन्हों ने तुझ से कहीं मुकर जो कुछ उन्हा ने कहा अच्छा कहा ॥ २६ । हाय कि उन के एसे मन होते कि वे मुझे डरते और सदा मेरी समस्त प्राज्ञाशों को पालन करने जिस उन के लिये और उनके वंश के लिये समातन ला भला होवे ॥ ३.। जा उन्ह कह कि अपने अपने तंबू को फिर जाओ॥ ३१ । परंतु तू जा है यहो मुझ पास खड़ा रह और मैं समस्त आज्ञा और विधि और विचार तुझे बताऊंगात उन्हें सिखाना जिवते वे उम् देश में जिस का अधिकारी मैं ने उन्हें किया है उन पर चलें। ३३ । सो तुम चीकास के जैसी परगेश्वर तुम्हारे ईशार ने अाज्ञा किई है पारून करो और दहिने बायें न मुड़ा । ३३ । तुम सब मार्गों पर चले जो परमेश्वर तुम्हारे ईश्वर ने तुम्हे बनाये जिसने तुभ जीते रहे। और तुम्हारा भला होने और उस देश में जिस के तुम अधिकारी हे।ओगे तुम्हारे जीवन बढ़े ॥