पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/४११

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की पुस्तका तुझ पर २८ पब्वै] ४०३ हाथ में कुछ बूता न रहेगा। ३३ । नेरे देश का और तेरे सारे परिश्रम का फल एक जाति जिसे तू नहीं जानना खा जायगी और नित्य केवल अंधेर होगी और पिमा जायगा॥ ३४। यहां ले किन आखों से देखते देखते बौड़हा हो जायगा ॥ ३५ । परमेश्वर तुझे घुरने में और टांगों में ऐसे बुरे फोडों से मारेगा कि पान के तलवा से लेके चांदी ताई चंगा न हो सकेगा। ३६ । परमेश्वर तुझे और तेरे राजा को जिसे तू अपने ऊपर स्थापित करेगा उस जाति के पास ले जायगा जिसे तू नगर तेरे पितर ने न जाना और वहां तू लकड़ो पत्थर के देवतों की पूजा करेगा॥ ३७ । और तू उन सब जातियों में जहां जहां परमेश्वर तुझे पहुंचावेगा एक श्राश्चर्य और कहावन और ओलाहना होगा ॥ ३८ ! तू खेत में बहुत से बीज बोयेगा और घोड़ा बटोरेगा इम लिये कि उन्हें टिड्डो चाट लेंगी॥ ३८ । तू दाख की बारी लगावेगा और उम की सेवा करेगा और मदिरा पीने और दाख एकट्ठा करने न पावेगा क्योंकि उन्हें कोड़े खा जायेंगे। ४० । नेरे समस्त सिवानों में जलपाई के पेड़ होंगे परंतु तू चिकनाई लगाने न पावेगा क्योंकि उन का जलपाई झड़ जायगा॥४१तू बेटे बेटियां जन्मावेगा और वे तेरे न होंगे क्योंकि वे वंचुआई में जायेंगे ॥ ४२ । नेरे मनस्त पेड़ को और तेरी भूमि के फल को टिड्डो चाट जायेंगी॥ ४३ । परदेशी जो तुझ में होगा तुझ से प्रवल और जंचा होगा और तू नोचा हो जायगा । वुह तुझे उधार देगा परंतु तुझ से उधार न लेगा बुह सिर होगा और तपांक हेरगा। ४५। और ये समस्त स्त्राप तुझ पर विगे और तेरे पीछे पड़ेंगे और तुझे ज्ञाही लेंगे जब लो तू नाश न होवे म कारण कि तू मे परमेश्वर अपने ईश्वर के शब्द को न सुना कि उस की आज्ञाओं का और उस की विधिन को पालन करता जैमौ उम ने तुझे आज्ञा किई है॥ ४६। और वे तुझ पर और तेरे बंश पर सदा के लिये चिन्ह और आश्चर्य होंगे। ४७। इस कारण कितने समस्त बहुताई के लिये मन की बानंदता और मगनता मे परमेश्वर अपने ईश्वर की सेवा न किई॥ ४८। इस लिये तू भूख में और पियाम में और नम्बता में और दरिद्रता में अपने बैरियों की सेवा करेगा जिन्हें परमेश्वर ४४ ।