पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५०५

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१७ . को पुस्तक । और अबिमलिक उम दिन भर नगर से लड़ता रहा और नगर को ले लिया और नगर के लोगों को मार डाला और नगर को ध्रुस्त किया और वहां नोन विधराया। 8६ । और जब सिकम के गल के लोगों ने यह सुना तो वे अपने देव बिरौन के मंदिर के गढ़ में शरण के लिये जा धुसे॥ ४७। और अबिमलिक को यह संदेश पहुचा कि सिकम के सब लोग एकटे हुए हैं। ४ा नब अविमलिक अपने सारे लोग समेत जतमन पहाड़ पर चढ़ा और अबिमलिक ने कुल्हाड़ा अपने हाथ में लिया और वृक्षों में से एक डाली काटो और उसे उठाके अपने कांधे पर धरा और अपने साथियों से कहा कि जो कुछ तुम ने मुझे करते देखा है तम भी शीघ वैसा करो। ४। तब सब लोगों में से हर एक ने एक एक डालो कार लिई और अविमलिक के पौछ हो लिये और उन्हें गढ़ पर डालके उन में आग लगा दिई यहां लो किसिकम के गढ़ के समस्त जल मरे ये सब पुरुष और स्त्रौ एक सहस्र के लग भग थे। तब अविमलिक ने बौज़ में आया और उत्त के साम्ने डेरा किया और उसे ले लिया॥ ५१ । परंतु नगर के भीतर एक दृढ़ गढ़ था उस में समस्त पुरुष और स्त्रियां और नगर के सारे बासो भागके जा घुसे और उसे बंद किया और गढ़ की छत पर चढ़ गये। ५२ । तव अविमलिक गढ़ पर आया और उससे लड़ा और चाहा कि गढ़ के द्वार जसा देवे ॥ ५३। तब किसी स्त्री ने चक्की के पाट का एक टुकड़ा अविलिक के सिर पर दे मारा जिसने उस को खोपरी चर हो जाय ॥ ५४ । तब उस ने अपने अस्त्रधारी नरुण को शीघ्र बुलाया और उसे कहा कि अपनी नलबार खोंच और मझे मार डाल जिसने मेरे विषय में कहा न जाय कि एक स्त्री ने उसे घात किया तब उस तरुण ने उसे गोदा और वह मर गया। ५५ । और दूसराएलियों ने देखा कि अवितिक मर गया तब हर एक अपने अपने स्थान को चला गया ॥ ५६ । दूमी रीति से ईश्वर ने अबिमलिक की दुष्टता को जो उन ने अपने सत्तर भाइयों को मारके अपने पिता से किई थी पलटा दिया। ५७। और स्किम के लोगो की सारी बुराई ईश्वर ने उन के सिरों पर डानी और बुह व प नो यरुचचाल के बेटे ताम ने उन पर किई थी उन पर पड़ी। [A. 13. S.] 03