पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५२४

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[९६ पच न्यायियो बनाया और उस में बसे। २६ । और उस नगर का नाम दान रक्खा जो उन के पिता इसराएल के बेटे का नाम था परंतु पहिले उस नगर का नाम लेस था। ३० । और दान के संतान ने उस खादी हुई मूर्ति की स्थापना किई और मुनस्मौ के बेटे गैरसुम का बेटा यहूनतन और उस के बेटे उस देश को बंधुभाई के दिन लो दान की गोष्ठी के पुरोहित बने रहे। ३५। और जब लो ईश्वर का मंदिर मेला में था उन्हों ने मौका को खोदी हुई मति अपने लिये स्थापित किई। १६ उन्नीसवा पर्व । ब इसराएल में कोई सजा न था सब ऐसा हुआ कि किसी लावीने जो इफरायम पहाड़ के अलंग में रहता था यहूदाह के बैनलहम से एक दासी को लिया। २। और उस की हासी कुकम्म करके उस पास से यहूदाह बैसलहम में अपने पिता के घर जा रही और चार मास लों वहां रही। ३। और उस का पति उठा और उस के पीछे चला कि उसे मनाचे और फेर लावे और उस के साथ एक सेबक और हो गदहे थेसो उसे अपने पिता के घर में ले गई और उस दासी के पिता ने ज्यों उसे देखा त्यों उस को भेंट से मगन हुआ। ४। और उस के ससुर श्रर्थात् उस स्त्री के पिता ने उसे रोका और बुह उस के साथ तीन दिन लो रहा और उन्हों ने खाया पौया और वहां टिके। ५। चौधे दिन जब वे तड़के उठे तब उस ने चाहा कि यात्रा करे तब दासी के पिता ने अपने जवाई से कहा कि रोटी के एक टुकड़े से अपने मन को संतुष्ट कर नब मार्ग लौजियो॥ ६ । से वे दोनों बैठ गये और मिल के खाया पौया क्योंकि दासौ के पिता ने उस जन से कहा कि मैं तेरी बिनती करता हूं मान जा और रात भर रह जा और मन को आल्हादित कर ॥ ७॥ फिर जब बुह मनुष्य बिदा होने को उठा तब उस के ससुर ने उसे रोका इभ लिये वुह फर वहां रहा। ८। और पांचवें दिन भार को उठा कि बिदा होवे फिर दासी के पिता ने उसे कहा कि मैं नेरी विनती करता हूं कि अपने मन को मगन कर सेर वे दिन ढले ले ठहरे रहे और दोनों ने एकटे खाथा पीया ॥ <। फिर बुह मनुष्य और उस की दासी