पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५७७

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१७५ब्द] को पुस्तक। को तराई में फ़िलिस्तियों से लड़ रहे थे॥ २० । और दाऊट भार को नड़ के उठा और भेड़ों को एक रखवाल को सै प के जैसा यशो ने उसे कहा था नेके चला और मुरचे पर पहुंचा और उसी समय सेना लड़ाई के लिये ललकारती थी॥ २१ । क्योंकि इसराएलियां और फिलिस्तियों ने अपनी अपनी सेना के अाम्ने साम्ने परे बांधे थे ॥ २२ । और दाऊद अपने पात्रों को रखवाल को सांप के सेना को दौड़ गया और अपने भाइयों से कुशल पूछा ॥ २३ । और बुह उन से बातें करताही था कि देखो वुह महाबीर जगत का फ़िलिखी जिस का नाम जुलिअन था फिलिस्तियों को सेनों में से निकल आया और उन्हीं बातों के समान बाला और दाजद ने सुना ॥ २४ । और इसराएल के सारे लोग उसे देख के उस के से भागे और निपट डर गये। २५ । तब इमराएल के लोगों ने कहा कि तुम उस जन को देखते हो जो निकला है कि यह निश्चय इसराएल को नुच्छ करने को निकल आया है और यों होगा कि जो जन उसे मारेगा राजा उसे बहुत धन से धनमान करेगा और अपनी बेटी उसे देगा और उस के पिता के घराने को दूसराएल में निबंध करेगा। २६। तब दाजद ने अपने पास पास के लोगों से पूछा कि जो जन उस फिलिस्ती को मारेगा और इसराएल से कलंक को दूर करेगा उसे क्या मिलेगा क्योंकि यह अस्त नः फिलिस्ती कौन है जो जीवते ईश्वर की सेना को तुच्छ समझे ॥ २७॥ सो लेगों ने इस रीति से उत्तर देके उसे कहा जा इसे मारेगा उसे यह मिलेगा ॥ २८। तब जम के बड़े भाई इलिअब ने उस की बात सुनी जो वुह लोगों से करता था और इलि अब का क्रोध दाजद पर भड़का और वुह बोला कि तू इधर क्यों आया है और बन में उन थोड़ी सी भेड़ों को किस पास कोड़ा मैं तेरे घमंड और तेरे मन को नटखटो को जानता हूं क्योंकित संग्राम दखन को उतर श्राया है। २९ । नबदाकद बोला कि मैं ने क्या किया क्या कारण नहीं। ३ । और ३० । और नुह वहां से दूसरी ओर गया और फिर वही बात कही तब लोगांने उसे आगे के समान फेर उत्तर दिया॥ ३१ । और जब उन बातों की जा दाऊद ने कही थौं चर्चा हुई तब माऊन लां संदेश पहुंचा और उस ने उसे लिया। [A. B. S.] 72