पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५९७

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२५ पर्च एक तुम में से अपना अपना खड्ग बांधे से उन्होंने अपना अपना खग बांधा और दाजद ने भी अपना खड्ग बांधा और दाजद के पौछ पीके चार सो जन गये और दो सो सामग्री के साथ रहे । २४ । परंतु तरुण में से एक ने नवाल की पत्नी अविजेल से कहा कि देख दाऊद ने अरण्य में से हमारे खामी पास टूतों को भेजा कि नमस्कार करें पर बुह उन पर झपटा। १५ । परंतु उन्हों ने हम से भलाई किई कि हमें कुछ न हुआ और जब लो हम चौगान में थे और उन से परिचय रखने ये तब तो हम ने कुछ न खाया ॥ १६ ॥ जब लो हम उन के माथ भेड़ की रखवाली करते रहे रात दिन वे हमारे लिये एक भाड़ थे। ५७। से अब ज्ञान रख और सोच कि तू क्या करेगी क्योंकि हमारे खामी पर और उस के सब घराने पर बुराई ठहराई गई, क्योंकि वह ऐमा बुरा जन है कि कोई उसी बात नहीं कर सन्ना ॥ १८। नब अबिजेल हाली से दो सौ रोरिया और दो कुप्पे दाख रम और पांच भेड़ बनी बनाई और मन सताईस एक भूना और एक सौ गुच्छा अंगूर और दो सौ गूलर की लिट्टी लिई और उन्हें गदहां पर लादा ॥ १६। और अपने सेब के को कहा कि मेरे आगे आगे बढ़ा देखा मैं तुम्हारे पीछे पीछे आती है परंतु उस ने अपने पति नवाल से न कहा । २०। और ज्याही वुह गदहे पर चढ़ के पहाड़ के बाड़ से उतरी तो क्या देखनी है कि दाजद अपने लोगों समेत उत्तर के उस के सन्मुख आया और उदा भेंट हुई । २१। अब दाऊद ने कहा था कि निश्चय मैं ने इस जन की समस्त बस्तुन की जा अरण्य में थौं वृथा रखवाली किई यहां ले कि उस के सब में से कुछ नष्ट न हुआ और भलाई की सही मुझ से बुराई किई ।। २२। सेर यदि विहान लो उस के समस्त पुरुषां में से मैं एक का जो भौत पर मूना है कोई तो ईश्वर उरले ार उभे भी अधिक दाऊद के शचुन से करे ॥ २३ । और ज्योंही अविनैन ने दाजद को देखा त्याही गदहे से उतरी और दाऊद के आगे बांधी गिरी और भूमि पर दंडवत किई । २४ । और उस के चरणों पर गिर के कहा कि हे मेरे प्रभु मुझी पर अपराध रखिय मैं तेरी बिनती करती हूं कि अपनी हामी का कान में बात करने दीजिये और अपनी दामो की बात