पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६५

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1 २८ पञ्च] की पुस्तक उसे आशीष देके कहा कि त कनान की लड़कियों में से पत्नीन लेना। ७। और कि यअकब ने अपने माता पिता की बात मानी और फद्दानयराम हो गया। ८। और एसी ने यह भी देखा कि कनानी लड़की मेरे पिता की दृष्टि में बुरी हैं। । तब एसी इममअएल कने गया और अबिरहाम के बेटे इसमजएल की बेटी महलत को जा नबीत की बहिन थी अपनी पत्नियों में लिया ॥१० यत्रकूद वीधरमवन से निकल के हरान की चोर गया ॥ ११॥ और एक स्थान में टिका और रात भर रहा क्योंकि सूर्य अस्त हुया था और उस ने उस स्थान के पत्थरों को लिया और अपना उमीसा किया और वहां सोने को लेट गया ॥ १२ । और बुह खम में क्या देखता है कि एक सीही प्रथिवी पर धरी है और उस की टोंक खर्ग से लगी थी और क्या देखता है कि ई.अर के दूत उस पर से चढ़ते उतरते हैं ॥ १३ । और क्या देखता है की परमेश्वर उस के ऊपर खड़ा है और यों बोला कि मैं परमेश्वर तेरे पिता अबिरहाम छोर इज़हाक का ईश्वर 'हं मैं यह भूमि जिस पर न लेटा है तो और तेरे वंश को देगा। २.४। और तेरे बंश पृथिवी की घल की नाई होंगे और तू पश्चिम पूर्व उत्तर दक्षिण को फूट निकले गा और नझ में और तेरे बंश में प्रविधी के मारे घराने आशीष पांबेगे। १५ । और देख मैं तेरे साथ हैं और मच जहां कहीं न जायगा तेरी रखवाली करूंगा और तुझे इस देश में फिर लाऊंगा और जबलों मैं तुझ से अपना कहा हुआ पूराज कर लेऊ तुझे न छोडूंगा॥ १६ । तब यत्रकय अपनी नींद से जागा और कहा कि निश्चय परमेश्वर इस स्थान में है और में न जानता था ॥ १७॥ नय बुह डर गया और बाला कि यह क्याही भयानक स्थान है ईश्वर के मंदिर को शेड़ यह और कुछ नहीं है और वर्ग का फाटक है । १८। और घअकव विज्ञान को तड़के उठा और उस पत्थर को जिसे उम ने अपना लीसा किया था खंभा खड़ा किया और उन पर तेत ढाला॥ १४। और उस स्थान का नाम वैतरल रकवा पर उसे पहिले उन नगर का नाम लीज वा। २.। और यथक व ने मनौती मानी और कहा कि यदि ईनर मेरे साथ रहे ग्रेर मेरे जाने के मार्ग में मेरा रखवाल हे।