पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६६०

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[२२ पद समूएल परमेश्वर को छोड़ ईश्वर कौन और हमारे ईश्वर का कोड़ चटान कौन। ३३ । ईश्वर मेरा बुता और पराक्रम वही मेरी चाल सिद्ध करता है। ३४ । वह हरिणो के से मेरे पांव बनाता है वुह मुझे मेरे ऊंचे स्थानों पर बैठाता है। ३५ । बुह मेरे हाथों को यड्ड के लिये सिखाता है ऐसा कि पोलाद का धनघ मेरी भुजाओं से टूटता है। ३६ । 'तू ही ने अपने बचाव की दाल भी मुझे दिई है और तेरी कोमलता ने मुझ बढ़ाया है। ३७। तू ने मेरे डग को मेरे नले बढ़ावा है यहां लो कि मेरौ घुट्ठीयां फिमल न गई॥ ३८ । मैं ने अपने वैरियों का पीछा किया और उन्हें नाश किया और उलरा न फिरा जब लो मैं ने उन्हें संहार न किया । ३६ । और मैं ने उन्हें नाश किया और उन्हें घायल किया ऐसा कि वे उठ भ सके हां वे मेरे पांव तले पड़े हैं॥ ४ ० । क्योंकि तू ने नंग्राम के लिय बल से मेरी करि बांधी जो मुझ पर चढ़ आये थे तू ने उन्हें मेरे नौच झुकाया। ४१ । तू ही ने मेरे बैरियों के गले भी मुझे दिये हैं जिसने मैं अपने बैरियों को नाश करूं ॥ ४२। उन्हों ने ताका पर कोई बचचैया न था परमेश्वर की ओर देखा परंतु उस ने उन्हें उत्तर न दिया॥ ४३ । तब मैं ने उन्हें प्रथिवी की धूल की नाई बुकनी किया मैं ने उन्हें मार्ग के चहले की नाई रौंदा और उन्हें बिछा दिया॥ ४ । तू ने मुझ मेरे लोगों के झगड़े से भी कुडाया है तू ने मुझे अन्यदेशियों का प्रधान किया है एक लोग जिसे मैंने नहीं जाना मेरी सेवा करेंगे। ४५ । परदेशियों के पुत्र कपट से मुझे माने गे सनते ही वे मेरे अधीन हो जायेंगे॥ ४६ । परदशौ कुम्हला जायेंगे और वे अपने सकेन स्थानों में से डर निकलेंगे॥ ४७ परमेश्वर जीता है और मेरा चटान धन्य मेरी मति का चटान पर महान होवे । ४८। ईश्वर मेरे लिये प्रतिफल देता है और लोगों को मेरे नोचे उतारता है॥ ४६ । और मुझे मेरे बैरियों में से निकाल लाता है न ने मुझे उन से ऊपर उभार लिया है जो मुझ पर चढ़ आये थे तू ने मुझे अंधेरी मनुष्य से कुड़ाया है॥ ५। हे परमेश्वर में अन्यदेशियों में तेरा धन्य मानूंगा और तेरे नाम की स्तुति गाऊंगा ॥ ५१ । बुह अपने राजा को मुक्ति का गर्गज है और अपने अभिषिक्त दाजद पर और उस के वंश पर मदा लों ट्या करता