पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६७

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२६ प] की पुस्तके । का बेटा हूँ उस ने दौड़के अपने पिता से कहा ॥ १३ । और यो हुआ कि लाबन अपने भांजे यअकब का समाचार मुनके उस्मे मिन्नने को दौड़ा और उसे गले लगाया और उसे अपने घर लाया और उस ने ये सारी बातें लाबन से कहीं। १४ । तब लाबन ने उसे कहा कि निश्चय न मेरी हड्डी और मांस है और बुह एक मास भर उस के यहां रहा ॥ १५ । तब लावन ने यअकब से कहा कि मेरा भाई होने के कारण क्या तू संत से मेरी सेवा करेगा से कह में नुझे क्या देऊ । १६ । और लाबन की दो बेटियां थीं जेठी का नाम लियाह और लहुरी का नाम राखिल था ॥ १७१ और लियाह की आंखें चुन्चली थीं परन्न राखिस सन्दरी और रूपवती थी॥ १८। और याकूब राखिल को प्यार करता था और उस ने कहा कि तेरी लडरी बेटी राखिल के लिये में सात बरम तेरी सेवा करूंगा। १६ । तब लाबन बोला कि उसे दूसरे के देने से तुझी को देना भला है सो तू मेरे साथ रह ॥ २० । और यअकब सात बरन लो राखिल के लिये सेवा किई और उस प्रीति के मारे जो वुह उससे रखता था घोड़े दिन की नाई समझ पड़े ॥ २१ ॥ और यकव ने लाबन से कहा कि मेरे दिन पूरे हुए मेरी पत्नी मुझे दीजिये जिसने मैं उसे ग्रहण करूं। २२। तब लाबन ने वहां के सारे मनुष्यों को एकट्ठा करके जेवनार किया। २३ । और सांझ केर या हुश्रा कि वुह अपनी बेटी लियाह को उस पास लाया और उस ने उसे ग्रहण किया ॥ २४ । और दामी के लिये लाबन ने अपनी दासी जीलफः को अपनी बेटी लीयाह को दिया। २५ । और ऐसा हुआ कि बिहान का क्या देखता है कि लियाह है तब उस ने लाबन को कहा कि आप ने यह मुझ से क्या किया क्या मैं ने श्राप की सेवा राखिल के लिये नहीं किई फिर आप ने किस लिये मुझे छला॥ २६ । तब लाबन ने कहा कि हमारे देश का यह व्यवहार नहीं कि लहरी कोठी से पहिले ब्याह देवें । २७। उस का अठवारा पूरा कर और तेरी और भी सात वरम की सेवा के लिये हम इसे भी तुझे देगे ॥ २८। यअकब ने ऐसाही किया और उस का अठवारा पूरा किया तब उस ने अपनी बेटी राखित को भी उसे पत्नी में दिया ॥ २९ । और लायन ने अपनी दासी बिलहः [A, B.S.] और 8