पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६८

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उत्पन्न [३. पर्व को अपनी बेटी राखिल की दासी होने के लिये दिया॥ ३० । तब यअकब ने राखौल को भी ग्रहण किया और बुह राखिल को लियाह से अधिक प्यार करता था और सात बरम अधिक उसने उम् की सेवा किई॥ ३१। और जब परमेश्वर ने देखा कि लियाह चिनिन हई उस ने उस की कोख खोली और राखिल बांझ रही। ३२ । और लियाह गर्भिणी हुई और बेटा जनी और उम ने उस का नाम रूबिन रक्षा क्योंकि उस ने कहा कि निश्चय परमेश्वर ने मेरे दुःख पर दृष्टि किई है कि अब मेरा पति मुझे प्यार करेगा॥ ३३ । और वुह फिर गर्भिणी हुई और बेटा जनी और बोली इस लिये कि परमेश्वर ने मेरा विनित होना मुनके मुझे इसे भी दिया सो उस ने उस का नाम समजन रकदा ॥ ३४। और फिर वुह गर्भिणी हुई और बेटा जनी और बोली कि इस बार मेरा पति मुझ से मिल जायगा क्योंकि मैं उस के लिये तीन बेटे जनी दूम लिये उस का नाम लाबी रखा गया ॥ ३५ ॥ फिर गर्भिणी हुई और बेटा जनी और बोली कि अब मैं परमेश्वर की स्तुति करूंगी दूस लिये उम ने उम का नाम यहूदाह रक्खा और जने से रह गई। ३० तौमयां पर्च। पर जब राखिल ने देखा कि यअकूब का बंश मभ से नहीं होता तो उस ने अपनी बहिन से डाह किया और यअकूब को कहा कि मुझे बालक दे नहीं तो मैं मर जाऊंगी। २। तव राखिल पर यअकब का क्रोध भड़का और उस ने कहा क्या मैं ईश्रर की संती हूं जिस ने तुझे कोख के फल से अलग रखा ।। ३ । और बुह बोली कि मेरी दासी बिलहः को देख और उसे ग्रहण कर और बुह मेरे घुटनों पर जनेगी जिसने मैं भी उस्से बन जाऊं ॥ ४। और उम ने उसे अपनी दासी बिलहः को पत्नी के लिये दिया और यअकूब ने उसे ग्रहण किया ॥ ५ । और बिलहः गर्भिणी हुई और यअकूब के लिये बेटा जनी॥ ६ तब राखिल बाली कि ईश्वर ने मेरा विचार किया और मेरा शब्द भी सुना और मुझे एक बेटा दिया इस लिये उस ने