पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६९

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३० पर्च की पुस्तक। ५४ उम् का नाम दान रक्खा। ७। और राखिल की दामी बिलह फिर गर्भिणी हुई और यअकूब के लिये दूमरा बेटा जनी ॥ ८। और राखील बोली कि मैं ने अपनी बहिन से ईश्वरीय मल्ल युद्द किया और जीता और उस ने उस का नाम नफ़ताली रक्खा ॥ । और जव लियाह ने देखा कि मैं जन्मे से रह गई तो उस ने अपनी दामी जिलफः को लेके यअप को पत्नी के लिये दिया ॥ १० । सेा लियाह की दासी जिलफ: भी यत्रकब के लिये एक बेटा जनी॥ १५ । तब लियाह बाली कि जया आती है और उस ने उस का नाम जद रकवा ॥ १२। फिर लियाह की दासी जिलफः यत्रऋव के लिये एक दूसरा बेटा जनी ॥ १३ । और लियाह बोली कि मैं आनंदित हं पुत्रियां मुझे धन्य कहें- गौ और उस ने उस का नाम यशर रक्खा ॥ १४। चैर गेहूं के लवने के समय में रूबिन घर से निकला और खेत में दृदाफल पाया और उन्हें अपनी माता लियाह के पास लाया तब राखिल ने लियाह से कहा कि अपने बेटे का दूदाफल मुझे दे ॥ ५५ । उस ने कहा क्या यह छोटी बात है जो तू ने मेरे पति को ले लिया और मेरे पुत्र के टूदाफल को भी लिया चाहती है राखिल बोली कि वुह आज रात तेरे बेटे के हुदाफल की संती तेरे साथ रहेगा। १६ । और जब वकूब साम्म को खेत में से आया लियाह उसे आगे से मिलने को गई और कहा कि आज आप को मुझ पाम आना होगा क्योंकि निश्चय मैं ने अपने बेटे का दूदाफन्त दे के आप को भाड़े में लिया है सो रात उस के साथ रहा । १७। और ईश्वर ने लियाह की सुनी और यह गर्भिणी हुई और यअकब के लिये पांचवां बेटा जनी॥ १८। और लियाह बोली कि ईश्वर ने मेरी बनी मुझे दिई क्योंकि मैं ने अपने पनि को अपनी दासी दिई है और उस ने उम का नाम इशकार रक्ला । १६ । और लियाह फिर गर्भिणी हुई और यअकब के लिये छटवां बेटा जनौ॥ २०। और बोली कि ईश्वर ने मुझे अच्छा देजा दिया है अब मेरा पति मेरे मंग रहेगा क्योंकि मैं उस के लिये छ: बेटे जनी और उम ने उस का नाम जबूलून रक्खा ॥ २१ । और अंत में बुह बेटी जनी और उम का नाम दीनाह रकदा ॥ २२ । और ईश्वर ने वुह उस