पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/७४

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उत्पत्ति [३१ पर्व पर बैठौ थी और लाबन ने सारे तंबू को देख लिया और न पाया। ३५। तब उसने अपने पिता से कहा कि मेरे प्रभु इस्म उदास न हो। कि में आप के आगे उठ नहीं सती क्योंकि मुझ पर स्त्रियां की रीति है सो उस ने दूढ़ा पर मूर्लिन को न पाया ॥ ३६ । और यअकब क्रुड हुआ और लावन से विदाद करके उत्तर दिया और लाबन को कहा कि मेरा क्या पाप और क्या अपराध है कि आप इस रीति से मेरे पीछे झपटे ॥ ३७॥ आप ने जो मेरी सारी सामग्री ढूंढी अाप ने अपने घर की सामग्री से क्या पाई मेरे भाइयों और अपने भाइयों के आगे रखिये जिसतं वे हम दोनों के मध्य में विचार करें। ३८। यह बीस बरम जो में आप के साथ था श्राप की भेड़ों और बकरियों का गर्भ न गिरा और मैं मे आप की मुंड के मेंढे नहीं खाये । ३८ । बुह जो फाड़ा गया मैं आप पास न लाया उन की घटी मैं ने उठाई बुह जा दिन को अथवा रात को चोरी गया अाप ने मुझ से लिया ॥ ४ ० । मेरी यह दशा थी कि दिन को घाम से भरा हुआ और रात को पाला से और मेरी आँखों से मेरी नींद जाती रही। ४१ । यो मुझे आप के घर में वीस बरस बीते मैं ने चौदह वरस श्राप की दोनों बेटियों के लिये और काबरम आप के पशु के लिये आप की सेवा किई और आप ने दम बार मेरी बनी बदल डाली ॥ ३२ । यदि मेरे पिता का ईश्वर और अबिरहाम का ईम्वर और इजहाक का भय मेरे साथ न होता तो आप निश्चय मुझे अब कुछ हाथ निकाल देते ईश्वर ने मेरी विपनि और मेरे हाघों के परिश्रम को देखा है और कल रात आप को डांटा। लाबन ने उत्तर दिया और यअकब से कहा कि ये बेटियां मेरी बेटियां और ये बासक मेरे बालक और ये चौपाए मेरे चौपाए और सब जो त देखता है मेरे हैं और आज के दिन अपनी इन बेटियों अथवा इन के खड़कों से जो वे जनी हैं क्या कर सहा हूं। ४४ । सो अब आ मैं और तू अापुस में एक बाचा बांधे और बही मेरे और तेरे मध्य में साक्षी ४५ । तब याकूब ने एक पाथर लेके खंभा सा खड़ा किया ।। ४६ । और यअकूब ने अपने भाइयों से कहा कि पन्थर एकट्ठा करो उन्हें ने पत्थर एकट्ठा करके एक ढेर किया और उन्होंने उमी ढेर पर खाया।