पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/७४२

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राजावली लेगी वुह बोली कि नहीं हे मेरे प्रभु ईश्वर के जन अपनी दासौ से झूठ न करिये ॥ १७॥ और बुह स्त्री गर्भिणी हुई और उनौ समय जो इलीसा ने उसे कहा था जौवन के समान एक बेटा जनी॥ ९८। और बुह बालक बड़ा हुआ और एक दिन यों हुआ कि वुह अपने पिता पास लबैयो कने गया । १६ । और अपने पिता से कहा कि मेरा सिर मेरा सिर उस ने एक तरुण से कहा कि उसे उम की माता पास ले जा ॥ २०॥ तब उस ने उसे लेके उस की माता के पास पहुंचाया और वुह उस के घुटनों पर पड़े पड़े मध्यान्ह को मर गया । २१ । तब उस ने उसे ले जाके उस ईश्वर के जन के विक्काने पर डाल दिया और द्वार मूंद के निकल गई ॥ २२। और अपने पति पास गई और कहा कि शौन एक तरुण और एक गदहा मेरे लिये भेजिये जिमते में ईश्वर के जन पास दौड़ जाऊं और फिर आऊं ॥ २३ । उस ने पूछा कि आज तू उस पास क्यों जाया चाहती है आज न अमावाश्या है न बिश्रान वह बोली कि कुशल होगा ॥ २४। तब उस ने एक गदहे पर काठी बांधी और तरुण से कहा कि हांक और बढ़ और मेरे चढ़ने के लिये मत रोक जब लो मैं तुझे न कहं ॥ २५ । सेा वह चल निकली और करमिल पहाड़ पर ईश्वर के जन पास आई और ऐसा हुआ कि जब ईश्वर के जन ने दूर से उसे देखा तो अपने सेवक जैहाजी से कहा देख बुद्ध भूमौ है ॥ २६ । उसे आगे से मिलने को दौड़ और उससे पूछ कि तू कुशल से है तेरा पति कुशल से है तेरा बालक कुशल से है उम ने उत्तर दिया कि कुशल से । २७। और उस ने उस पहाड़ पर आके ईश्वर के जन के चरण को पकड़ा परन्तु जैहाजी ने पास आके चाहा कि उसे अलग करे परन्तु ईश्वर के जन ने कहा कि उसे छोड़ दे क्योंकि इस का माण दुःखी है और परमेश्वर ने मुझ से छिपाया और मुझे नहीं कहा ॥ २८ तब वुह बोली कि कब में ने अपने प्रभ से पत्र मांगा मैं ने नहीं कहा कि मुझे मत भुला॥ २६ । तब उस ने जैहाजी को कहा कि अपनी करिहांव कस और मेरी छड़ी हाथ में ले और चला जा यदि कोई तझे मार्ग में मिले तो उसे नमस्कार मत कर और यदि कोई तुझे नमस्कार करे तो उसे उत्तर मन दे और मेरी छड़ी बालक के मंह पर रख ॥३० । तब उस की माना बोली परमेश्वर के जीवन