पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१३९

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प्रायः अधमरी गायें और बछड़े गली २ भटकती दीख पड़ती हैं। कहने को हम बड़े भारी गो भक्त हैं पर गोभक्ति की असलियत तो हमारी गोशालाओं की दशा को देखने से खुल जाती है। जैसा कष्ट पशु पक्षी हमारे घरों में पाते हैं वैसा कष्ट मांसाहारी लोग भी पशुओं को नहीं देते। किसी प्राणी को धीरे २ बहुत दिनों तक कष्ट देकर मार डालने की अपेक्षा एक दम ख़तम कर देना कम निर्दयता का काम है।

प्रायः गायों के बच्चे असावधानी से मर जाते हैं। और उनकी खालों में भुस भरवा कर उनके सामने रख कर दूध दुहा जाता है। प्रायः बच्चों को कुत्ते फाड़ खाया करते हैं।

एक समय था कि साधारण गृहस्थियों के पास भी हज़ारों की संख्या में गायें रहती थीं। ईसा से ५०० वर्ष पूर्व कालायन के काल में गौ १० पैसे को, और बछड़ा ४ पैसे को मिलता था। बैल की क़ीमत ६ पैसा थी, भैंस ८ पैसे में आती थी। और दूध १ पैसे में १ मन आता था, इसके २०० वर्ष बाद मसीह से ३०० वर्ष प्रथम जब भारत पर सम्राट चन्द्रगुप्त शासन करते थे घी १ पैसे का २ सेर और दूध २५ सेर मिलता था। ईसवी सन् के शुरू में ४८ पैसे की गाय ९३ पैसे का बैल मिलता था। ५ वीं शताब्दी में विक्रमादित्य के राज्य में गौ ८० पैसे में और बैल ५१२ पैसे में मिलती थी। अलाउद्दीन के जमाने में घी का भाव दिल्ली में ७४ पैसे मन था और अकबर के जमाने में १९५ आने मन।

यह वह ज़माना था जब दूध बेचना पाप समझा जाता