पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(१४२)

था। नगर बस्तियों के बाहर घने बन थे और उनमें गाय स्वच्छंद चरा करती थी। उन दिनों दीर्घायु निरोगी काया और दुर्धर्षबल शरीर में रहता था। आज वे दिन न रहे। आज हमारे दुधमुँहे बच्चों को भी एक बूंद दूध मिलना दुर्लभ हो रहा है। आस्ट्रेलिया की आबादी ४ लाख है और गायें १२ करोड़। पर भारत के ३४ करोड़ नर नारियों में सिर्फ ४ करोड़। भारत में प्रति वर्ष ४० लाख गाय बैल काटे जाते हैं। जिनमें केवल दो लाख भारतीय मुसलमानों के काम आते हैं। शेष ३८ लाख की खपत देश के बाहर होती है। इस समय गो मांस का सबसे सस्ता बाज़ार भारतवर्ष है। इस हत्या से घी दूध ही नहीं अन्न की पैदावार भी कम हो रही है जंगल साफ हो रहे हैं ज़मीनों के रकबे बढ़ रहे है परन्तु मज़बूत गाय बैलों की देश में बराबर कमी हो रही है।

भारत में करीब ८० हज़ार गोरे सिपाही हैं। जिनका मुख्य भोजन गो मांस है। यदि प्रत्येक पुरुष १॥ सेर मांस भी प्रतिदिन खाय तो रोज़ाना ९४६ मन और साल भर में ३ लाख ४५ हजार २९० मन हुआ। इतना कितनी गौओं की हत्या से मिलेगा? फिर ७ करोड़ मुसलमान भी हैं जो जिद या ग़रीबी के कारण बकरे का मांस जिसे हिन्दुओं ने मँहगा कर दिया है, न खाकर सस्ता गाय का मांस खाते हैं।

दर्जन भर सरकारी कसाई घरों के अलावा देश मे ३॥ लाख कसाई हैं। यह जानकर रोमांच होता है आज ऋषियों की पवित्र भूमि पर २० करोड़ मांसाहारी मनुष्य रहते हैं इनमें से