पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१४७

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उसने २४ सङ्घाराम देखे। अन्त में वह सिंहल को जहाज़ में बैठ गया।

इस यात्री के दो सौ वर्ष बाद ह्वेनसांग चीनी यात्री भारत में आया, वह फर्गन, समरकन्द, बुख़ारा और बलख होता हुआ भारतवर्ष में आया। वह सन् ६४० ईस्वी में भारतवर्ष में था।

उसने जलालाबाद को सम्पन्न नगर पाया जो बौद्धों से परिपूर्ण था, उसने यहां ५ शिवाले हिन्दुओं के देखे। और सौ पुजारी भी देखे। कन्दहार और पेशावर में उसने १ हजार बौद्ध संघारामों को उजड़ और खण्डहर पाया तथा हिन्दुओं के सौ मन्दिर देखे।

वह मालवे के राजा शिलादित्य का वर्णन करता है जो प्रसिद्ध विक्रमादित्य का पुत्र था। विक्रम ने एक बौद्ध भिक्षु को जिसका नाम मतोत्हृत् था हिन्दुओं के पक्ष पाती होने के कारण अपमानित किया था—परन्तु शिलादित्य ने उसे बुला कर प्रतिष्ठा की थी। इससे आगे इस यात्री ने पौलुश नगर के निकट एक ऊंचे पर्वत पर नीले पत्थर से काटकर गढ़ी हुई एक दुर्गा देवी की मूर्ति देखी थी। यहां उसने धनी और दरिद्र सब को एकत्रित हो कर मूर्ति की पूजा करते देखे थे। पर्वत के नीचे महेश्वर का एक मन्दिर था और वहां वे साधु रहते थे जो राख लपेटे रहते थे।

काबुल और चमन मे जहां दो शताब्दि प्रथम फाहियान ने