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पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१४८

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बौद्ध धर्म का प्रबल प्रताप देखा था—इस यात्री ने सब संघारामों को उजाड़ तथा देवताओं के दस मन्दिर देखे थे, वह तक्षाशीला और कश्मीर भी गया—वहां उसे जैन मिले जो महावीर की मूर्ति पूजते थे। काश्मीर में बौद्ध अभी भी काफी थे। वहां उस समय कनिष्क राज्य करता था जो बौद्ध था। और जिसने एक बार बौद्धों के उन्नत करने की सभा बुला कर महायान समुदाय प्रचलित किया था। उसने पंजाब के राजा मिहिरकुल का भी जिक्र किया है जो बौद्धों का प्रसिद्ध बैरी था। जिसने पांचो खण्डों के बौद्ध भिक्षुओं को मार डालने की आज्ञा दी थी और जिसने कन्दहार को विजय कर वहां के राजवंश को नष्ट कर डाला तथा बौद्ध धर्म के संघारामों स्तूपों और भिक्षुओं को छिन्न भिन्न कर दिया था। सिंध के तट पर इसने ३ लाख बौद्धों को कतल कराया था।

मथुरा में इसने अभी तक बौद्धों का प्रताप देखा था। वहां अभी २० संघाराम थे और दो हज़ार भिक्षु यहां की पूजा उत्सव आदि करते थे।

द्वाव में आकर उसने गंगा की प्रशंसा सुनी, जो पापों का नाश करने वाली प्रसिद्ध थी। वह उसकी भारी धार को देखकर भी बहुत प्रभावित हुआ था। हरद्वार में उसने एक बड़ा देव मन्दिर देखा जिसमें बड़े चमत्कार किये जाते थे। हर की पैड़ी तब पत्थर की बन चुकी थी, और उसमें नहाने का महात्म्य भी प्रसिद्ध होगया था।

कन्नौज को उसने गुप्त राजाओं की सम्पन्न नगरी पाया