और वे पदार्थ उसे दे दिये। पीछे देखा दोनों की मिली भगत थी।
मुहुर्त बताने के इन के ढङ्ग सुनिये, गिनगिना कर और लकीर खींच कर कहेंगे—महाराज, असाढ़ शुक्ला ३ रविवार ३ घड़ी ९ पल चढ़े दिन का मुहुर्त बनता तो है।
आप सन्देह से कहेंगे। बनता तो है क्या माने, ठीक ठीक बताइये। अब वे पितलाया सा मुँह बना कर कहेंगे—
'और सब ठीक है' सिर्फ चन्द्रमा अपने घर का नहीं! परन्तु दिन रविवार है, इससे हानि नहीं। आप यही मुहुर्त रखिये इस प्रकार पीछे के लिये अपना कुछ बचाव के निकाल ही लेते हैं। बहुधा लोग कहा करते हैं—
दिशा शूल ले जावे बांया, राहू योगिनी पूठ।
सन्मुख लेवे चन्द्रमा, लावे लक्ष्मी लूट॥
विवाह शादियों का तो एक खास साहलग होता है, उन दिनों के अलावा आप विवाह आदि शुभ कर्म कर ही नहीं सकते। बहुधा यह उस्ताद लोग बिना मुहुर्त भी मुहूर्त का कुछ उपाय निकाल ही लेते हैं। एक पूजा बृहस्पति की कराई। एक दुघड़िया मुहूर्त भी होता है, जो बहुत आवश्यकता से जल्दी के कामों में निकाला जाता है। बहुधा मुहूर्त के समय कहीं जाना न हो सके तो यारों ने उसका भी संशोधन निकाल रखा है अर्थात् प्रस्थान करके रख दिया जाता है—वह इस प्रकार, कि जाने वाला—अपने दुपट्टे में पांच मंगल पदार्थ—यथा सुपारी, मूंग, हल्दी, धनिया, गुड़