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पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/२७

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ओ बादशाह! तूने हमेशा ही कुछ न कुछ मुझे दिया, आज भी कुछ दे। दारा के पास कुछ न था, वह जो वस्त्र पहने था, उसे उस ने उतारा और भिक्षुक को दे दिया!!

महाभारत में एक सुन्दर कथा उल्लेख है—

जिस समय सम्राट् युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ समाप्त किया। और विश्व भर की सम्पदा को दान कर दिया, तब उन्हें कुछ गर्व हुआ और कृष्ण से कहने लगे कि महाराज! अब मैं सार्वभौम पद का अधिकारी हुआ।

भगवान् कृष्ण कुछ न कह पाये थे कि इतने में एक अद्भुत मामला हुआ। सबने देखा—एक नौला जिसका आधा शरीर सोने का और आधा साधारण है, किसी तरफ से आकर यज्ञ के पात्रों में लोट रहा है। सब लोग परम आश्चर्य से इस जीव को देखने लगे। तब कृष्ण ने कहा—हे कीटयोनिधारी! तुम कौन हो? यक्ष हो कि पिशाच, देव हो या दानव, सत्य कहो। और किस अभिप्राय से पवित्र यज्ञ पात्रों में तुम लोट रहे हो।

सब को चकित करता हुआ वह जीव मनुष्य वाणी से बोला—हे महाराज! मै न यक्ष हूँ न देव, मै वास्तव में क्षुद्र कीट हूँ। बहुत दिन हुए एक महान पात्र के अवशिष्ट जल में मुझे स्नान करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उस पवित्र जल से मेरा आधा शरीर भीगा था, उतना ही वह सोने का होगया। मैंने सुना था कि सार्वभौम चक्रवर्ती महाराज युधिष्ठिर ने महायज्ञ किया है। मन में विचारा कि चलो मरती जाती दुनिया है—एक बार लोट