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पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/३३

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इसी भांति पूजे जाते हैं। अब इन धर्म के अन्धों में और वैज्ञानिकों में एक न एक दिन तो गहरी ठनेगी ही।

मेरे कहने का यह अभिप्राय है कि किसी भी कार्य या विचार की अच्छाई और बुराई उस के सदुपयोग और दुरुपयोग में है। बुराइयों का सदुपयोग धर्म हो सकता है, और भलाइयों का दुरुपयोग अधर्म। परन्तु बुराइयों का दुरुपयोग तो सदैव ही पातक और अधर्म है। यह पातक किस भांति मनुष्यों को गले तक ले डूबा है। इसका वर्णन हम अगले अध्यायों में करेंगे।