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पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/३५

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के दिग्गज मेधावी पुरुष पत्थर की मूर्तियों को परमेश्वर के समान पूजते हैं, यह अन्ध विश्वास जन्य पीढ़ियों के कुसंस्कार का फल है। मुहम्मद अली और डाकटर अन्सारी जैसे दिग्गज वाणी और राजनीतिज्ञ, अजमलखां जैसे विचारशील पुरुष भी यह न घोषणा कर सके कि फरिश्तों की गप्पें मानने के योग्य नहीं। वे अन्त तक कुरान शरीफ को ईश्वर वाक्य और फरिश्तों द्वारा मुहम्मद साहेब पर उसकी बहीं आना मानते रहे हैं। बहिश्त और दोज़ख में भी उनका पूरा विश्वास है और उनकी आत्मा क़ब्र में प्रलय तक अपने कर्मों के फल की प्रतीक्षा में चुपचाप पड़ी रहेंगी, यह भी उन्हें विश्वास रहा। आज ईसाई संसार ने पृथ्वी के उच्च कोटि के वैज्ञानिक पैदा किये, पर उनके वे अन्ध विश्वास वैसे ही बने हुए हैं। एक ईसाई लड़के ने एकबार पृथ्वी कैसी है, इसके उत्तर मे कहा था—स्कूल में गोल और गिरजे में चपटी।

धर्म का आधार वास्तव में मनुष्य की भलाई बुराई के विचार पर ही है। और वे विचार भिन्न २ देशों के निवासियों की स्थिति के अनुसार अनेक भाँति के होंगे, इसलिये उन विचारों का आधार मूल प्रकृति पर नहीं, प्रत्युत शिक्षा के आधार पर होना चाहिये।

अब मैं यहां योरुप के धर्म विकास और हृास पर एक दृष्टि डालूंगा और फिर भारतीय धर्म विकार पर विचार करूंगा।

बहुत प्राचीन मौखिक कथाओं के आधार पर, जिन्हें प्राचीन धार्मिक गण सत्य मानते थे। भूमध्य सागर के द्वीपों और