यह नगर यूनानी इञ्जिनियरों ने बड़ी सावधानी से बनाया था और उस में चार हज़ार महल, पाँच हज़ार स्नान घर, चार सौ नाट्यशालाएं, बारह हज़ार बाग़ और अन्यों के अलावा चालीस हज़ार यहूदी करोड़ पति थे। इस में एक महान् पुस्तकालय था जो अज़ायबघर के नाम से मशहूर था। इसमें पृथ्वी भर की दश लाख पुस्तके संग्रहीत थीं जिन मे ऐसे ग्रन्थ भी थे जिनका एक एक का मूल्य पैतालीस हजार रुपये तक था।
जब यह नगर मुसलमानों ने विजय किया तो खलीफा से पूछा गया—कि इस पुस्तकालय को क्या किया जाय? तो उसने उत्तर दिया—अगर ये किताबें कुरआन के अनुकूल हैं तो इनकी आवश्यकता नहीं—क्योंकि कुरआन ही काफी है। और यदि उसके विपरीत है तो भी उनकी ज़रूरत नहीं। अतः सब पुस्तकों को नष्ट कर दो। मुसलमान सेनापति ने पाँच हज़ार हमामों को वे पुस्तकें बांट दो जहाँ वे इन्धन के स्थान पर जलाई गईं और इस प्रकार ६ मास तक उनसे हमाम गर्म किये गये।
भारतवर्ष में मुस्लिम आक्रमण कारियों के अत्याचार भी कम रोमाञ्चकारी नहीं। गुलाम वंश के कुतुबुद्दीन रावक ने हांसी, दिल्ली, मेरठ, अलीगढ़, रणथम्बोर, अजमेर, ग्वालियर, कालिंजर और गुजरात में हाहाकार मचा दिया था। हज़ारों मन्दिर जमीदोज़ कर दिये गये, और लाखो स्त्री पुरुषों को गाजर मूली की भांति काट डाला गया। इसके गुलाम—मुहम्मद ने काशी के हज़ारों मन्दिरो को ढहा दिया और विहार, बङ्गाल में पाल और