परदेशी जो पैसा फेक देता था। वह देवी की भेंट चढ़ाया जाता था। और वह स्त्री उस परदेशी के साथ देवी की पूजा का विधान सम्पूर्ण कर उससे सहवास करती और फिर घर लौटकर निर्दोष समझी जाती थी। इसी प्रकार के रिवाज़ पच्छिमी एशिया के दूसरे भाग में, जैसे उत्तरीय अफरीका, साइप्रस, और पूर्वीयमडिटरेनियन के दूसरे टापुओं में, तथा यूनान में भी था। यूनान के प्रसिद्ध नगर 'कोरिन्थ, में किले के ऊपर 'एफरोडाइट' देवी का मन्दिर था, इस मन्दिर में १ हजार से ऊपर देव दासियाँ थीं, ये देवी के सामने नाचती गाती थीं—देश पर विपत्ति आने पर ये ही देवी से उनके दूर करने की प्रार्थनाये किया करती थी, और इस कारण इनका बड़ा मान होता था। ये स्त्रियाँ अन्य पुरुषों से धन लेकर उनकी कामेच्छा भी तृप्त किया करती थीं।
युरुक में इस्तार देवी का एक मन्दिर था। यह उर्बरता की देवी समझी जाती थी। इसकी उपासिकायें वेश्याये ही रखी जाती थी। इन्हे 'कादिस्तू' की उपाधि मिली थी, जो बहुत ही पवित्र उपाधि कहलाती थी।
"होरोडोटस" के पहिले इस प्रकार का व्यभिचार वृक्षों की ओट में होता था और वह धार्मिक समझा जाता था। डा॰ जे॰ जी॰ फ्रेजर ने अपनी 'ऐडोनिस ऐटिस ओसिरिस, नामक पुस्तक में लिया है कि "प्रकृति की उत्पादिका शक्ति की उपासना विविध नामो से होती थी, पर उसका ढंग प्रायः एक ही सा था। उधर महादेवी और देवता का संयोग होता था तो इधर पुजारिनों