नागरीमचारियो पत्रिका अतिरिक्त कोई और सम्राट चंद्र' के वर्णन से नहीं मिलता। अब यह देखना है कि क्या चंद्रगुप्त ने भारत को पश्चिमोत्तरी सीमामों को पार. कर मध्य एशिया में बाहीकों को परास्त किया था, जिसका उल्लेख मेहरौली के अभिलेख में है।' रामगुप्त के शासन-काल में भारत पर शकों का भीषण आक्रमणमा था। हतोत्साह हो रामगुप्त अपनी राजमहिषी ध्रुवदेवो का त्याग करने को तत्पर हो गए थे। किंतु चंद्रगुप्त के पराक्रम, साहस और चातुर्य से गुप्त-श्री शकों द्वारा कलुषित होने से बच गई। चंद्रगुप्त ने ध्रवदेवी का रूप धारण कर और अपने वीर योद्धाओं को सहेलियों और परिचारि. कात्री के रूप में सन्निविष्ट कर शक-स्कंधावार पर छापा मारा और सहजैव शत्रु का समूल विनाश कर दिया । यह घटना जलंधर दोभाव में हुई थी। जलंधर जिले में अब भी 'अलिवाल' नाम का एक पुराना गाँव है। कदाचित् 'अलिवाल' 'अलिपुर' का नामांतर हो, जहाँ 'हर्षचरित' के अनुसार चंद्रगुप्त ने शक को पराजित किया था । डा० अल्तेकर के मतानुसार यह शक राजा महाक्षत्रप रुद्रसेन थे जिन्होंने ईसा की ३४८ शती-३७८ शती तक राज्य किया था और जिनके शासन- काल में शकों ने पर्याप्त उन्नति की थी। परंतु जैसा कि हम अन्यत्र दिखा चुके हैं शो की शक्ति इस समय बहुत क्षीण हो गई थी। श्राभोरों का गुजरात और सौराष्ट्र पर पूर्ण प्रभाव स्थापित हो चुका था, जैसा श्री राखालदास बनर्जी ने लिखा है-'ऐसी अवस्था में यह नितांत संदेहास्पद है कि किसी भी काठियावाड़ के शक नरपति के लिये समुद्रगुप्त के उत्तराधिकारी पाटलिपुत्र नरेश गुप्त-सम्राट की कन्या का माँगना संभव हो सकता था। और फिर गुजरात की १- तोरवा सप्तमुनि येन समरे सिन्धोजिता बाहीका |--वही, पक्ति। २-डा. अ. स. अल्तकर ने प्रचुर सामग्री और साधनों के माधार पर इस घटना का पूर्ण चित्र उपस्थित किया है। -जनन भाव बिहार ऐंड उड़ीसा रिसर्च सोसायटी, भाग १४, पृष्ठ २२३-७३ | ३-श्री काशीप्रसाद जायसवाल का लेख, वही, भाग १ डा. दे. रा. भांडारकर के अनुसार यह युद्ध कारपुर में हुआ था-मालवीय स्मारक ग्रंथ । परतु इसका कोई विशेष प्रमाण नहीं है। ४-डा० मस्तेकर, वही। ५--श्री राबावदास बनर्जीकृत एज बा दि इंपीरियल गुप्ता , पृष्ठ २९ ।
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