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पृष्ठ:नागरी प्रचारिणी पत्रिका.djvu/२९

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'इसण' शब्द का अर्थ भावार्य इतिहास-तत्त्व-महोदधि श्री विजयचंद्र त्रि नासिक की लेण संख्या दस में यक्षमित्रा के लेख के नीचे उषवदात का एक अभिलेख है । उषवादात सुप्रसिद्ध क्षहरात-वंश के शक क्षत्रप नहपान का जामाता था। कुछ विद्वानों ने इसका समय ईसा से ८२-७७ वर्ष पूर्व माना है और कुछ ने ईसयो सन् १९६ से १२४ तक । इस अभिलेख के अनुसार उपरिनिर्दिष्ट लेण को चातुर्दिश संघ को अर्पित किया गया है। चातुर्दिश संघ को चिवरिक और कुसण का मूल्य तीन हजार कार्षापण देने का उल्लेख है। इस शिलालेख में 'कुसण' शब्द विशेष महत्त्व का है। इस शब्द का इस अभिलेख में दोस्थानों पर उल्लेख हुआ है। पाठ इस प्रकार है- (.) दत्तचायेन भक्षयनिधि काहापण सहस्त्रानि श्रीणि, १.००, संघस चातुदिसस ये इमस्मि लेण वसांतानं भविसंति चिवरिक कुराणमले । (२) एतो मम लेण वसवुयान भिक्षुन वीसाय एकीकस विरिक वारसक। य सहस्रप्रयुत पायुन-पडिके शसे भतो कुशनमूह । इन पदों का अर्थ इस प्रकार किया गया है-(१)और उसने अक्षय- निवि तीन हजार कार्षापण, ३०००, संघ चातुर्दिश को दिए जो इस मेण में रहनेवालों का विवरिक ( कपडे का खर्चा) और कुसणभूख होगा। (२) उनसे मेरी लंण में रहनेवाले बीस भिक्खुनों में से प्रत्येक को बारह बीवर, जो एक हजार पौन प्रतिशत पर प्रयुक्त हैं उनसे कुलणमूत। 'कुसण' के विभिन्न अर्थ इस 'कुसणमूल' के साथ पाए 'कुसण' शब्द का अर्थ विद्वानों ने अपने अपने मंतव्यों के अनुसार भिन्न भिन्न किया है। एम० सेनार ने इसका अर्थ 'वर्ष के विशेष मासों में मासिक वृत्ति' किया है और 1-भारतीय इतिहास की रूपरेखा, भाग २. पृष्ठ ९४९, टिप्पणी-संख्या ४ ।